Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 315
________________ 166 9. तौ स्मरतः । 10. स किमर्थं हसति ? 11. चौरो धनं हरति । 1 विष्णुशर्मा अभणत् । विष्णुशर्मा बलीवर्दं तत्राऽनयत् । वृक्षे पक्षिणोऽकूजन् । अकूजन् पक्षिणस्तत्र । स बालः किमर्थं क्रन्दति । बालाः अक्रीडन् । सर्वे विद्यार्थिनोऽवधनगराद्वहिः अक्रीडन् । अहं तदन्नं नाऽखादम् । अहं नाभक्षम् कस्तत्र खेलति । सोऽगदत् । अहमगदम् । स बालोऽखनत् । कोऽखनत् तत्र ? मम पुस्तकं रामः कुत्र अगूहत् । मृगः चरति । चरति तत्र मृगः । अचरत् तत्र मृगः । अचलत् स वृक्षः । स मन्त्रमपत् । अहं नाऽन्जपं मन्त्रम् । स जल्पिष्यति । त्वम् अजल्पः । आत्मनेपद कुछ धातु परस्मैपद में होते हैं, कुछ आत्मनेपद में होते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जिनके दोनों रूप होते हैं । उनको उभयपद कहते हैं । परस्मैपद वाले प्रथम गण के धातुओं के साथ आपका परिचय हुआ, अब आत्मनेपद वाले धातुओं के साथ परिचय कीजिए । प्रथम गण । आत्मनेपद । वर्तमान काल कत्थू - श्लाघायाम् । ( स्तुति करना, घमण्ड करना) द्विवचन एकवचन कत्थ प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष कत्थसे उत्तम पुरुष कत्थे प्रथम पुरुष बोध मध्यम पुरुष बोधसे उत्तम पुरुष बोधे वे दोनों याद करते हैं I वह किसलिए हँसता है ? चोर धन हरता है। कत्थे कत्थेथे कत्थाव बुध - बोधने । (जानना) बोधाव बहुवचन कत्थन्ते कत्थध्वे कत्थाम बोधन्ते बोधवे बोधाम

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