Book Title: Sanskrit Sopanam Part 02
Author(s): Surendra Gambhir
Publisher: Pitambar Publishing Company

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Page 29
________________ अहम् सदा समये अपठम्, समये च अक्रीडम्। अहम् सदा अम्बायाः जनकस्य आचार्यस्य च आज्ञाम् अपालयम्। रमेशः अपृच्छत्- “किम् त्वम् कदापि अचोरयः?" अहम् रमेशाय अकथयम्- “अहम् कदापि किमपि न अचोरयम्।” शब्दार्थाः चिन्त् (चिन्तय्) युक्तिः कृष् उन्नतिः वृष्टिः आसम् सदा समयः मनमाड FEBE सोचना उपाय हल चलाना उन्नति बारिश (मैं था हमेशा समय खेलना आज्ञा, हुक्म (आज्ञा) मानना कभी भी चोरी करना (to think) (device) (to plough) (prosperity) (rain) (I was) (always) (time) (to play) (order) (to obey) (ever) (to steal) जीना क्रीड् आज्ञा पाल् (पालय्) कदापि चुर् (चोरय) TEITE नए धातु (New verb-roots)- चिन्त् (2), कृष् (1), क्रीड् (1), पाल् (2), चुर् (2) नए रूप (New Nouns)- युक्ति, उन्नति, वृष्टि - मति के समान (like मति) नए अव्यय (New avyayas)- सदा, कदापि उपपद-विभक्तिः - कथ् धातु के योग में, जिसको कहा जाए उसके वाचक शब्द में चतुर्थी विभक्ति (When कथ् is used, the word for the person, to whom something is said, gets the fourth vibhakti) 22.0

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