Book Title: Sanghpattak
Author(s): Harshraj Upadhyay
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तर्गत "ओरियण्टल लायब्रेरी" से प्राप्त हुई थी। सापेक्षतः यह प्राचीन है । अन्तिम इस प्रकार है ॥ इति श्री संघपटकस्य टीका परिपूर्णा, लिखिता पं. विनयसोमेन, स्ववाचनार्थम् ।। B संघपट्टक-टीका, यह " प्रति" अनुयोगाचार्य स्व० श्री केशरमुनिजी गणि के शिष्य मुनिवर पं. बुद्धिमुनिजी गणिने प्रतिलिपि भेजी थी। (३) A संघपट्टक-लघुवृत्ति, कर्ता-हर्षराज उपाध्याय, यह " प्रति " हमें श्री अगरचंदजी नाहटा द्वारा प्राप्त हुई थी। मूल प्रति " भांडारकर ऑरियण्टल रीसर्च इन्स्टिटयूट "-पूना में सुरक्षित है। पत्र संख्या २७, प्रति प्राचीन व पंच पाठ है। इस की लिपि बहुत सुन्दर और सुपाठ्य है। देखिये ब्लोक । B संघपट्टक-लघुवृत्ति, यह " प्रति" अनुयोगाचार्य स्व० श्री केशरमुनिजी गणि के शिष्य मुनिवर पं. बुद्धिमुनिजी गणिने इस की प्रतिलिपि भिजवाई थी। मूल प्रति के लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है संवत् १६०८ वर्षे माह सुदि ५ दिने शनिवारे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसरिविजयराज्ये श्रीविक्रमनगरे गणधर-चोपडागोत्रे सा० देवराजस्तत्पुत्र सा० जगसिंहस्तत्पु० सा० कम्मा भा० श्रा० कौतिकदेवाः पु० रत्न सा० रायपाल सुरताण संसारचंद प्रमुखपरिवारयुतेन सा० रायपालेन ज्ञानपञ्चमीतपस उद्यापने श्रीसच्चपट्टकलघुवृत्तिप्रतिर्विहरा. पिता श्रीधनराजोपाध्यायानां । वाच्यमानं चिरं नन्दतु ॥ शुभं कल्याणमस्तु । श्रीधनराजोपाध्यायमित्रैः प्रसादीकृता प्रतिरियं वा. जयसुन्दरगणेः । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः । कल्याणमस्तु । श्रीः । आभार सर्वप्रथम हम परमपूज्य गुरुवर्य उपाध्याय पद विभूषित १००८ सुखसागरजी महाराज सा. के प्रति हम अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं, जिनके सतत् श्रम से यह १. सं. २००३-२००४ कलकत्ता में । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 132