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अन्तर्गत "ओरियण्टल लायब्रेरी" से प्राप्त हुई थी। सापेक्षतः यह प्राचीन है । अन्तिम इस प्रकार है
॥ इति श्री संघपटकस्य टीका परिपूर्णा, लिखिता पं. विनयसोमेन, स्ववाचनार्थम् ।।
B संघपट्टक-टीका, यह " प्रति" अनुयोगाचार्य स्व० श्री केशरमुनिजी गणि के शिष्य मुनिवर पं. बुद्धिमुनिजी गणिने प्रतिलिपि भेजी थी। (३) A संघपट्टक-लघुवृत्ति, कर्ता-हर्षराज उपाध्याय,
यह " प्रति " हमें श्री अगरचंदजी नाहटा द्वारा प्राप्त हुई थी। मूल प्रति " भांडारकर ऑरियण्टल रीसर्च इन्स्टिटयूट "-पूना में सुरक्षित है। पत्र संख्या २७, प्रति प्राचीन व पंच पाठ है। इस की लिपि बहुत सुन्दर और सुपाठ्य है। देखिये ब्लोक ।
B संघपट्टक-लघुवृत्ति, यह " प्रति" अनुयोगाचार्य स्व० श्री केशरमुनिजी गणि के शिष्य मुनिवर पं. बुद्धिमुनिजी गणिने इस की प्रतिलिपि भिजवाई थी। मूल प्रति के लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है
संवत् १६०८ वर्षे माह सुदि ५ दिने शनिवारे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसरिविजयराज्ये श्रीविक्रमनगरे गणधर-चोपडागोत्रे सा० देवराजस्तत्पुत्र सा० जगसिंहस्तत्पु० सा० कम्मा भा० श्रा० कौतिकदेवाः पु० रत्न सा० रायपाल सुरताण संसारचंद प्रमुखपरिवारयुतेन सा० रायपालेन ज्ञानपञ्चमीतपस उद्यापने श्रीसच्चपट्टकलघुवृत्तिप्रतिर्विहरा. पिता श्रीधनराजोपाध्यायानां । वाच्यमानं चिरं नन्दतु ॥ शुभं कल्याणमस्तु । श्रीधनराजोपाध्यायमित्रैः प्रसादीकृता प्रतिरियं वा. जयसुन्दरगणेः । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः । कल्याणमस्तु । श्रीः ।
आभार
सर्वप्रथम हम परमपूज्य गुरुवर्य उपाध्याय पद विभूषित १००८ सुखसागरजी महाराज सा. के प्रति हम अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं, जिनके सतत् श्रम से यह
१. सं. २००३-२००४ कलकत्ता में ।
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