Book Title: Sanatan Jain Dharm Author(s): Champat Rai Jain Publisher: Champat Rai Jain View full book textPage 6
________________ शुद्धाशुद्ध सूची। सतर अशुद्ध विवर विचार होगी होगा जन को, मानघ को मानप इसस इससे उनकी उनके तप जो मनुष्य तप मनुष्य देवताओंको फल देवताओं को करीय असम्भव है मसम्भव है। मात्माका मात्माके करीब २ अनोलोग। जेनीलोग, भानवका मानव प्राचीन हैं। प्राचीन है"Page Navigation
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