Book Title: Sanatan Jain Dharm Author(s): Champat Rai Jain Publisher: Champat Rai Jain View full book textPage 5
________________ (२) अन्तमें मैं जैनधर्म के अभ्युदयके काप्यों तल्लीन रहनेवाले, हिन्दो माताके गौरववद्ध सुपूत मरने परम प्रिय भ्राता स्व. कुमार देवेन्द्रप्रसाद जैनकी पवित्र आत्माका स्मरण किये तथापि अन्यवाद की सुमनांजलो समर्पण किये बिना नहीं रह सक्ता, जिनकी कृपासे अनेक सुमन घमे के उद्यान में थारोपित और पल वित होकर विकसित रूपमें प्रकट हुए हैं। इस मुमनके प्रकाश का भी बहुत कुछ श्रेय उन्ही को आत्माको प्राप्त है। मेरो आशा है कि सभी धमनिष्ठ मजन म यतन प्रमाणों वाली निराली पुस्तकको एक बार ध्यानपूरक नया नियता पूर्वक पढ़कर मेरे परिश्रमको सार्थक करेंगे। ७-८-२३ ] के० पी जैन. PANIm AVALPage Navigation
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