________________
मोक्ष के साधन
एक दिशा की ओर जाने से ही इच्छित स्थान पर पहुँचा जाता है, उसी प्रकार दूसरी गतियो को छोड़कर, भौतिक लक्ष को त्याकर, मोक्ष का लक्ष अपनाने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है । यहा सम्यग् एकान्त की ही आवश्यकता है। इसके बिना मुक्ति नहीं होतो, । सम्यग् एकान्ती ही "एगतसोक्खं समवेद मोक्खं" (उतरा० ३२) प्राप्त कर सकता है । आगमो मे भी सम्यग् एकान्त का ग्रहण है। जैसे कि-"आया एगंतदंडे यावि भवई, आया एगंत बाले यावि भवई, आया एगंत सुत्तेयावि भवई" । ( सूयग० २-४ ) सम्यग् एकान्त से अनेकान्त का विरोध नही, किन्तु लक्ष मे दृढता होकर प्राप्ति की ओर पुरु षार्थ होता है । यदि सम्यग् एकान्त को त्यागकर लक्ष और कार्य में विवेक हीनता अपनाई जाय, तो हानि उठानी पड़ती है । जैमे सेर भर दूध मे तोले भर पडे हुए विष को अनेकान्त दृष्टि से पीने पर दुखी होना पडता है।
अनेकान्तवाद, जिस अपेक्षा से जिसकी अस्ति मानता है, उसी अपेक्षा से उसकी नास्ति नहीं मानता । लक्ष-हीन होकर पानी के बैल की तरह चक्कर लगाये करना, सम्यग्दृष्टि की सीमा से बाहर है । जिसका एक लक्ष नही, उसका बेडा संसार समुद्र मे भटकता ही रहता है । अतएव लक्ष का स्थिर होना नितान्त प्रावश्यक है और सम्यग् दृष्टि का अंतिम लक्ष मोक्ष का होता ही है।
मोक्ष के साधन सम्यग्दृष्टि का लक्ष मोक्ष का होता है । वह मोक्ष