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सम्यक्त्व विमर्श
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को मानता है, तो मोक्ष के साधनो को भी मानेगा ही। बिना साधना के सिद्धि कैसे हो सकती है ? मोक्ष के साधन, बन्ध के साधनो से उल्टे होते हैं। जिन साधनो से बन्धन की प्राप्ति होती है, उनके विपरीत साधनो से बन्धन कटते हैं। इन्द्रियो के शब्दादि विषय बध के कारण हैं, तो विषयो की इच्छा का निरोध, बन्धनो को काटने का साधन है। इसे निर्जरा तत्त्व'कहते है। यह निर्जरा तत्त्व ऐसा है जो मोक्ष के बाधक कारणो को नष्ट करता है । एक ओर निर्जरा होती जाय और दूसरी ओर बध भी होते जायँ, तो मुक्ति नही हो सकती । इसलिए निर्जरा के पूर्व बन्ध के कारणो को रोकना पडेगा। बन्धन
के कारणो को रोकने का उपाय 'संवर" कहलाता है। मिथ्यात्व, अविरति, आदि को हटाकर सम्यक्त्व, विरति आदि सवर के द्वारा नूतन बन्ध को रोकने से बन्धन के नये कारण पंदा नही होते । इस प्रकार सवर और निर्जरा (सकाम निर्जरा) ये दोनो तत्त्व, मोक्ष तत्त्व के साधन हैं । जिस प्रकार कुशल वैद्य, रोगी को कुपथ्य से बचाकर, रोग के कारणो को सबसे पहले रोकता है और फिर पुराने रोग को दूर करने की दवा देता है, उसी प्रकार संवर तत्त्व, बध के नूतन कारणो को रोकता है और निर्जरा तत्त्व, पुराने बंधन काटकर मुक्ति प्रदान करता है।
तत्त्वज्ञान की वैज्ञानिकता यदि हम विचार पूर्वक देखें, तो जैन धर्म का तत्त्वनिरूपण बिलकुल वैज्ञानिक दिखाई देगा । जैसे-प्रथम जीव