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सम्यक्त्व विमर्श
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हैं । चतुर्गति के अनेक स्थानो पर जाने के लिए हिंसादि पाप और अकाम निर्जरा, पुण्योपार्जन, सरागता, सकर्मता आदि कारण होते हैं । इन सब के मार्ग भी अलग अलग होते हैं । सिद्ध गति तो ऐसी है कि जिसका एक ही मार्ग है और वहाँ जाने वाले भी थोडे ही होते हैं।
जिस प्रकार भव्य भवन के शिखर पर पहुँचने के लिए एक ही सीढी (चढने का मार्ग) होता है, उसी प्रकार मोक्षमहल मे पहुँचने के लिए निवृत्ति का एक ही मार्ग है और क्षपकश्रेणी के सोपान चढकर ही पहुँचा जाता है । इसके सिवाय और कोई मार्ग नही है।
सर्वज्ञता पर श्रद्धा
प्रश्न-जिनेश्वरो के त्याग, उनकी उत्कृष्ट तपस्या, उनकी अपूर्व वीतरागता और महान् प्रात्मबल पर विश्वास हो सकता है, किंतु एक मात्र सर्वज्ञ सर्वदर्शी नही माना जाय तो क्या हर्ज
उत्तर-यदि जिनेश्वरो को सर्वज्ञ सर्वदर्शी नही माना जाय, तो सम्यग्दृष्टि से त्यागपत्र देना ही माना जायगा । जो मिथ्यादृष्टि होते हैं,वे ही जिनेश्वरो की सर्वज्ञता से इन्कार करते हैं । ऐसा करके वे समस्त तत्त्व-ज्ञान को ही अमान्य जाहिर करते है। क्योकि जिसने सर्वज्ञता नही मानी, वह धर्मास्ति कायादि द्रव्य, स्थावरकाय और निगोद के जीव, नर्क, स्वर्ग, मोक्ष आदि किस आधार से मानेगा ? वह इनसे भी इन्कार कर सकेगा।