Book Title: Samyaktva Vimarsh
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 309
________________ इस अनमोल रत्न की रक्षा करो २८५ किंतु सम्यक्त्व-रत्न तो आत्मा को अखण्ड सुख देता है-मोक्ष प्रदान करता है। ऐसे विश्वोत्तम अनमोल रत्न की बड़ी सावधानी से रक्षा करनी चाहिये । मूल्यवान् वस्तु को लूटने वाले भी बहुत होते हैं, तद्नुसार इस महानिधि पर डाका डालने वाले-डाक अनेकानेक हैं। अनन्तानुबन्धी कषाय और दर्शनमोहनीय कर्म का उदय, इसका मूल कारण है और बाह्य निमित्त कई मिल जाते हैं । कुप्रवचन, संसार मार्ग, मध्यम मार्ग आदि और इनके साथ रहा कुर्तक-जाल, भोले भाले सम्यग्दष्टियो को अपने चक्कर मे फंसाकर, उनकी इस महानिधि को लूटकर दरीद्री बना देते है । “सर्वधर्म समभाव" और ऐमी कई मोहक विचारणाओं ने लाखो जैनियो के पास से इस रत्न को लूट लिया । हमे इन मोहक एवं आकर्षक जालो से बचते रहना चाहिये और परममान्य जिनागमो के बताये हुए मुक्ति-मार्ग पर दृढ श्रद्धा रख कर, इस अनमोल रत्न की रक्षा करनी चाहिए। A

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