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सम्यक्त्व महिमा
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से । अभी तीसरा साधन प्राय. नही है। दो साधनो से ही परीक्षा करनी चाहिए, अन्यथा धोखा खा जाओगे और खो बैठोगे-इस दुर्लभ रत्न को।
धन्य है वे प्राणी, जो अपने सम्यक्त्वरूपी रत्न की रक्षा करते हुए दृढ रहते हैं और दूसरो को भी दृढ बनाते है । उन्हे वारबार धन्यवाद है।
"संवेगेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ, अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ, अणंताणुबंधिकोहमाणमायालोभे खवेइ, णवं कम्म ण बंधइ, तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहि काऊण दंसणाराहए भवइ, दसणविसोहीए य गं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणणं सिज्झइ । सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं णाइक्कमइ" ॥१॥
हे भगवन् ! सवेग से जीव को किस गुण की प्राप्ति होती है ? उत्तर-संवेग से उत्तम धर्म श्रद्धा जागृत होती है। धर्म की उत्कृष्ट श्रद्धा करने से संवेग (मोक्ष की अभिलाषा) की शीघ्र प्राप्ति होती है । अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ का क्षय होता है । नये कर्मों का बन्धन नही होता। मिथ्यात्व की विशुद्धि होकर दर्शन की आराधना होती है। दर्शन विशुद्धि से शुद्ध होने पर कोई तो उसी भव मे सिद्ध हो