Book Title: Samyaktva Vimarsh
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 318
________________ २६४ सम्यक्त्व विमर्श सकता, तो कम से कम जैसा वीतराग भगवान् ने प्रतिपादन किया है, वैसा ही कथन तुझे करना चाहिए । कोई व्यक्ति शिथिलाचारी होते हुए भी यदि वह भगवान् के विशुद्ध मार्ग का यथार्थ रूप से, बलपूर्वक निरूपण करता है, तो वह अपने कर्मों को क्षय करता है। उसकी प्रात्मा विशुद्ध हो रही है। वह भविष्य मे मुलभबोधी होगा। 'मोक्षपाहुड' मेकि बहुणा भगिएणं जे सिद्धा णरवरा गएकाले । सिज्झिहहि जे भविया, तं जाणइ सम्मत्तं माहप्पं । ___-अधिक क्या कहे, जो उत्तम पुरुष भूतकाल मे सिद्ध हुए है वे, और जो भविष्य मे सिद्ध होगे, वे सम्यक्त्व के बल से सिद्ध हाते है। सम्यक्त्व के इस माहात्म्य को समझना चाहिये। ते धण्णा सुकयत्था ते सूरा ते वि पंडिया मणुया। सम्मत्तं सिद्धियरं सिविणे वि ण मइलियं जेहिं ॥ वे मनुष्य धन्य है कि जिनके पास मुक्ति प्रदान कराने पाला सम्यक्त्व है और उस सम्यक्त्व रूपी महारत्न को वे स्वप्न मे भी मलिन नही होने देते। वे ही मनुष्य कृतार्थ है और वे ही पडित (समझे हुए) एवं शूरवीर हैं। मिथ्यात्वरूपी महाशत्रु का प्रबल अाक्रमण होते हुए भी जिन्होने अपने सम्यक्त्व रत्न को नही खोया और सुरक्षित रखा, वे वास्तव मे शूरवीर हैं और जिन्होने अनेक प्रकार के वादो, तर्कों और प्रलोभनो के होते हुए भी अपने सम्यग्दर्शन को

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