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सम्यक्त्व विमर्श
गई हो, तो ऐसी वस्तु तो बिना नीव के भी जमीन पर ठहर सकती है, जैसे ग्रामोफोन का अोधा रखा हुआ भोगरा । मेरु पर्वत, पृथ्वी के भीतर १००६०१० योजन चौडा है और पृथ्वी पर १०००० योजन चौडा, फिर क्रमश कम होते होते शिखर पर एक हजार योजन चौडा रह गया है । इस प्रकार की वस्तु के डिगने, या गिरने की श का ही कैसे हो सकती है ?"
. इन्ही पडित जी ने एक दूसरे मुनिजी को 'पासत्थ' विशेषण (जो शिथिलाचारी साधु का है) को भ० महावीर की परम्परा की ओर से, भ० पार्श्वनाथ की परम्परा के साधुओ के प्रति व्यगात्मक बताकर इसका ऐतिहासिक महत्व बताया था। इसके बाद इस विषय मे 'श्रमण' के मई ५४ के अंक मे लेख भी निकला था । जिसकी आलोचना स० द० सेप्टेम्बर ५४ के अंक मे हुई है। अब कई पंडित साधु स्वयं इस दोष को बढा रहे है। कोई अपनी मिथ्या मान्यता को प्रचारित करने के लिए, और कोई अपनी ढिलाई को छुपाने के लिए,सूत्र सम्मत विधि-विधानो के प्रति शंका फैलाकर इस दोष को बढ़ा रहे है।
धर्मास्ति, अधर्मास्ति, अलोक, स्वर्ग,नरक,परमाणु आदि प्रादि किसने देखे ? कौन अपने जीवन मे साक्षात्कार करता है ? जो साक्षात्कार का हठ पकड़े बैठे हैं, वे यो ही रह जायेंगे ।
जिस प्रकार चोरी, जारी, मानव-हत्या प्रादि अपराधो का दण्ड स्थानान्तर (कारागृह) मे भुगता जाता है, और अमीर लोग गर्मी के दिनो मे शिमला मसूरी प्रादि जाकर आराम का अनुभव करते हैं, इसी प्रकार महान् अपराधो की सजा