Book Title: Samyaktva Vimarsh
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 296
________________ २७२ सम्यक्त्व विमर्श साथ मिल जाय, तब तो ठीक ही है, यदि वैसा साथ नही मिले, तो इच्छित स्थान, दिशा और मार्ग की सामान्य जानकारी भी उसे इच्छित स्थान पर पहुंचा सकती है । जैसे एक छोटे और देहाती गांव का रहनेवाला व्यक्ति, बबई जाने लगा । वह पहली ही बार बबई जा रहा है । अकेला है, अनपढ है । बबई मे उसका कोई जाना पहिचाना नही । वह इतना जानता है कि सेठ रिखबदासजी की दुकान बबई मे है और रिखबदासजी का उस गाँव मे लेनदेन है। वे जब कभी आते हैं, तो खेमराज भी उनके पास जाता है। खेमराज ने सेठ से पूछा "आपकी दुकान बंबई मे किस जगह है ?" -"जौहरी बाजार मे १५ नम्बर की। क्यो बबई देखना है क्या"-सेठ ने पूछा ? -हाँ, सेठ । मनुष्य जन्म पाया, तो बंबई तो देख लूं । अब फुरसद के दिन हैं । दो चार दिन ठहरूँगा । ठहरने को जगह चाहिए, बस"-खेमराज ने कहा। "हाँ, अपनी दुकान है, वही ठहरना और खाना पीना भी वही । जब जाओ तब मेरी चिट्ठी ले जाना, सो तुम्हे तकलीफ नही पडेगी"-सेठ ने कहा। खेमराज, सेठ की चिट्ठी लिये बिना ही चला गया। उसने सोचा-'निवास के लिए कोई स्थान चाहिए। खाना पीना तो मैं अपने पैसे से कर ही लगा।" वह रेल्वे स्टेशन पहुंचा । बंबई की ओर जानेवाली


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