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अपरिवर्तनीय
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था। उसके एक करंडिए मे सॉप और दूसरे मे मिठाई थी। एक चूहे ने करंडिए को सूंघा, पहले मे उसे सुगन्ध नही आई, वह दुमरे करडिए के पास गया और सुगन्ध पाकर उसे काटकर मिठाई खाई । दूसरे चहे ने बिना सोचे-समझे सॉप वाले करडिए को काटा और साँप का भक्ष बन गया।
यह है बिना सोचे समझे प्रयत्न का परिणाम | बिना सोचे-समझे प्रयत्न करने से सुख के बजाय दु ख पल्ले पडता है और राष्ट्र तक बरबाद हो जाते हैं। इन उदाहरणो से सम्यगदर्शन का महत्व समझ मे आ सकता है। सम्यग्दर्शन के प्रभाव मे ही जीव, अनादिकाल से संसाराटवी में परिभ्रमण कर रहा है । इसके बिना कठोर संयम तथा उग्न तप भी बेकार से रहे। यह है सम्यग्दर्शन का महत्त्व ।
अपरिवर्तनीय सम्यक्त्व रूपी महान् रत्न की प्राप्ति सरल नही है । यह किसी की इच्छा या समझ पर आधारित नही है और न किसी के अभिप्रायो से इसका रूप बनता-बिगडता है । यह अपने आप मे जैसा है वैसा ही है। सर्वज्ञ भगवतो ने सम्यग्दर्शन का जो स्वरूप बताया है, वही सत्य तथ्य और यथार्थ है । उसी की आराधना से ध्येय की सिद्धि होती है।
यदि कोई लौकिक विद्याओ का पडित-विश्व-विद्यालयो का प्रोफेसर, प्रिंसिपल अथवा भौतिक विज्ञान का प्राचार्य, सम्यग्दर्शन के विषय मे अपना अभिप्राय व्यक्त करे, और वह