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सम्यक्त्व विमर्श
सूत्र मे ऐसे स्थान का उल्लेख करके विधान किया है कि "जिस गांव, नगर यावत राजधानी मे प्रवेश करने और निकलने का केवल एक ही द्वार हों, तो उस ग्राम नगरादि मे साधु और साध्वी को-दोनो को, नही रहना चाहिए। यदि साधु रहे, तो साध्वी नही रहे और साध्वी रहे तो साधु नही रहे" । इस प्रकार एक ही द्वार और एक ही मार्ग वाले कुछ ग्रामादि भी होते हैं। चतुर्गति रूपी संसार मे परिभ्रमण वाले स्थान के लिए तो हिंसादि १८ पाप रूप अनेक मार्ग है । प्रत्येक मार्ग से नरकादि मे जाया जा सकता है । परन्तु मोक्ष रूपी महानगर के लिए तो एक-मात्र मार्ग-'निवृत्ति' ही है । ससार (-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कपाय और योग) से निवृत्त होकर सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र अर्थात् श्रद्धा और चारित्र रूपी दो चरण की प्रवृत्ति से मोक्ष महानगर की दिशा मे गति करना और क्षपकश्रेणी के एक मात्र द्वार से हो कर मोक्ष महानगर मे पहुँचना होता है। इसके सिवाय दूसरा मार्ग है ही नही, बिल्कुल नही ।
किसी खास स्थान पर पहुँचने के लिए प्रस्थान करते समय तो विविध मार्ग हो सकते हैं, किंतु आगे चलकर सभी को एक ही मार्ग पर पाना पडता है। जिस प्रकार अपने निवास स्थान से निकल कर रेल्वे स्टेशन पर पहुँचने के लिए कई मार्ग होते हैं, किंतु स्टेशन के अहाते में एक ही मार्ग से सेव को प्रवेश करना होता है और एक ही रास्ते से निकल कर गाड़ी में बैठा जाता है, उसी प्रकार मोक्ष की ओर कदम बढाने वाले के भी प्रारम्भ मे विभिन्न मार्ग होते हैं। कोई पाखण्ड और मिथ्या