________________
सम्यक्त्व विमर्श
सकता । सम्यक्त्व का कुछ एक रूप तो होना ही चाहिये । जिस प्रकार सूर्य और चन्द्र का जैसा भी हो, एक ही प्रकार का आकार प्रकार है, किंतु दुनिया उन्हे विविध रूपो मे मानती है | एक हीरे का मूल्य अनेक जौहरी, दृष्टि-भेद के कारण न्यूनाधिक आकते हैं, जब कि वह किसी निश्चित मूल्य का ही है । इसी प्रकार परीक्षको की विभिन्न मतियो के अनुसार सम्यक्त्व का रूप नही बन सकता । वह जैसी है वैसी ही रहने की । तर्क - जाल मे फँसाकर मनुष्य, किसी को धोका दे सकता है और खुद भी धोका खा सकता है, परन्तु वास्तविकता को तो तर्क-जाल भी नही बदल सकती ।
२८
विश्वास की व्यापकता
I
अन्ध विश्वास मे सारा जगत् ही पडा हुआ है । इसमे मुक्त कौन रहा ? सूझते पर विश्वास करके प्रगति करनेवाला अन्धा, इच्छित स्थान पर पहुँचता भी है और भटक भी जाता है । जिस पर विश्वास करे, वह ईमानदार प्रामाणिक और योग्य है, तो अन्धे को पार लगा देता है और बेईमान तथा लफंगा हो, तो लूटकर भूलभुलैया में फँसा देता है ।
रोगी, वैद्य से अपना उपचार करवाता है, तो उस पर विश्वास - अंध विश्वास करता ही है । दवा भी विश्वास रखकर ही लेता है । जलयान, वायुयान और रेलगाडी मे इसी विश्वास से बैठता है कि यह हमें सकुशल इच्छित स्थान पर पहुँचा देगी । भोजन करता और दूध पीता है, तो रसोइये पर विश्वास कर के