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सम्यक्त्व विमर्श
है, उसी प्रकार मिथ्यात्व का किंचित्-थोड़ा-सा स्वीकार भी सम्यक्त्व का घात कर देता है। समाचार पत्रो मे ऐसी खबरें भी पढने को मिली-कि 'अमुक रोगी ने, दवा के भरोसे विष पी लिया और मर गया। अलमारी मे दवाइयो की अनेक बोतलें रक्खी हई है, उसमे एक विष की बोतल भी है । एक डॉक्टर, खद भल कर दवा के बदले विष पी गया और मर गया । अलमारी मे दवा की बोतलें अधिक थी और विष की तो एक ही थी, फिर भी भूल हो गई और उसका घातक परिणाम भुगतना पड़ा। दूसरी ओर सारा विश्व मिथ्यात्व से भरा हुआ है। दुनिया के पाकर्षक और मोहक साधन तथा विषय-कषाय को भडकाने के निमित्त, प्रचुर मात्रा में मौजूद है और सम्यक्त्व के निमित्त बहुत ही थोडे । वे मोहक निमित्त प्रति समय सम्यक्त्व को दूषित करना चाहते है । यदि पूरी सावधानी नही रक्खी गई, तो सम्यक्त्व का स्थिर रहना कठिन हो जाता है।
जिस चारित्र के कारण सभी कर्मों का नाश होकर मोक्ष मिल सकता था, उस चरित्र मे थोडा-सा मिथ्यात्व का विष मिल गया, तो क्या हुआ ? अधिक से अधिक ग्रेवेयक देव होकर सागरोपमो तक दैविक सुख भोगते रहे, पर अंत मे पुनः जन्म और पुन. मृत्यू, यह क्रम तो चलता ही रहा । मिथ्यात्व के विष - से दूषित बने हुए, उग्र चारित्र से जीव का एक भी भव कम नही हुआ।
मिथ्यात्व के मोहक रूप मिथ्यात्व अपने नग्न रूप मे (भोडी शकल में) भी