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महान् आधार-स्तम्भ
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करने योग्य है । निश्चित्त तो नही, पर विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि इस प्रकार की परख लगभग सही और सच्ची ही निकलेगी।
__ महान् आधार-स्तम्भ सम्यग् दर्शन जीव के लिए महान् आधार-स्तम्भ है। जब तक इसकी प्राप्ति नही होती, तब तक अनन्त जन्म-मरण का बीज (मिथ्यात्व) मौजूद ही रहता है । मिथ्यात्व की जड़ काट देना, अनन्त जन्म-मरण की जड़ काटना है । संसार मे सर्वत्र मिथ्यात्व भरा हुआ है । अनन्तानन्त जीव, मिथ्यात्व के चंगुल मे फंसे हुए हैं । सारा वातावरण मिथ्यात्वमय बना हुआ है। ऐसे वातावरण मे सम्यक्त्व की खैर कहाँ ? जिस प्रकार भयानक वन में जीवन और धन की सुरक्षा होना कठिन हो जाता है, उसी प्रकार मिथ्यात्व से भरपूर ससार मे सम्यक्त्व का सुरक्षित रहना भी कठिन हो जाता है । कई भोले जीव, लुट जाते हैं, अपने सम्यक्त्व रत्न को खो बैठते हैं और फिर से मिथ्यात्व के चगुल में फंस जाते हैं । इनमे से कई तो अनन्त जन्म-मरण कर लेते हैं । इस प्रकार मिथ्यात्व महा भयानक डाक है । जितना बल चारित्रावरणीय-मोह का नही, उतना दर्शनमोहनीय का है । सित्तर कोडाकोड़ी सागरोपम से भी अधिक स्थिति दर्शनमोहनीय की है। जीव का भयानकशत्रु मिथ्यात्व है । इस मिथ्यात्व के चंगुल मे दृढता पूर्वक जकडा हुआ प्राणी, अनादि काल से दु.ख भोग रहा है । यदि जीव का सम्यग् पुरुषार्थ जागृत होकर एक बार थोड़ी देर के