________________
तत्त्वज्ञान की वैज्ञानिकता
तत्त्व है, इस जीव तत्त्व से सम्बन्धित ही दूसरे आठ तत्त्व हैं । जीव तत्त्व मे एकेन्द्री से लगाकर अनिन्द्रिय और नारक से लगाकर इन्द्र अहमिंद्र और सिद्ध तक के जीव है । जीवो की शुभाशुभ परिणति के कारण ही कर्माश्रव होता है और पुण्य पापरूप फल देने वाला बन्ध होता है । इसी से तो जीव, नरक और निगोद जैसे दुख और इन्द्र अहमिन्द्र जैसे सुख पाता हुआ जन्म मरण करता रहता है । चारो गति मे भटकने वाले जीव, अपनी शुभाशुभ परिणति से कर्म पुद्गल को अपनाकर शुभाशुभ बधन से अपने को बाँध लेते हैं और उसके परिणाम स्वरूप विविध दशा को प्राप्त होकर चतुर्गति रूप संसार मे भटकते रहते हैं । यह जीव, लोक के सभी प्रकाश प्रदेशो मे जन्ममरण कर चुका । प्रनन्तानन्त कर्म वर्गणाओ को बाधकर छोड चुका और पुन २ निरन्तर बाध छोड करता रहा । औदारिक वैक्रेय, तेजस ओर कार्मण शरीर अनन्त बार पा लिया । कोई २ जीव तो आहाराक शरीर भी पा चुके । इस प्रकार छ तत्त्वो मे जीव, अनादिकाल से बना रहा। इन छ तत्त्वो से श्रागे बढ कर सातवे आठवे तत्त्व मे जो प्रवेश करते हैं, वे सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी और सम्यग्चारित्री होते हैं । सम्यग्दृष्टि यह समझ लेता है कि जीव मैं भी हूं और मुक्तात्मा सिद्ध हैं । मेरे और उनके बीच इतनी महान् कारण मेरा प्रजीव के साथ शुभाशुभ मता को मिटाकर उनके समान बनने कारणो को रोकने रूप संवर तथा पुराने
भगवान् भी जीव विषमता होने का
सम्बन्ध है । इस विष
के
लिए मुझे सम्बन्ध के बन्धनो को काटने
२३