Book Title: Samichin Dharmshastra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 8
________________ पूज्य क्षुल्लक श्रीगणेशप्रसादजी वर्गीकी शुभ सम्मति श्रीमान् ब्र० पंडितप्रवर जुगलकिशोर जी मुख्तारकी मान्य सिद्धहस्त लेखनी से ऐतिहासिक सामग्री के साथ-साथ मन-वचनकायकी मलिन परिपतिकी संशोधिका रागद्वेपकी निर्हरणी समीचीन धर्मशास्त्रकी व्याख्या हमारे सन्मुख आई है। ऐसे पदानुसारी भाष्यकी विद्वानों तथा समाज के लिये अतीव आवश्यकता थी । इससे सब धार्मिक वन्धुको ध्यानाध्ययनका विशेष लाभ होगा । A यह महान् ग्रन्थ गागर में सागरवाली कहावत को चरितार्थ करनेवाला तार्किकप्रवर चतुरस्रवी श्रीसमन्तभद्रस्वामीका जैसा रत्नोंका पिटारा है, उसी प्रकार उसको सुसज्जित विभूषित करनेवाले हृदयग्राही ऐदयुगीन विद्वानका वर्णमुवर्णमय भाष्य है अर्थात् रत्नोंका सुवर्ण में जड़ने का कार्य जैसा है । चैत्र वदि ६ सं० २०११ गणेश वर्णी ईसरी

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