Book Title: Sambodhi 1994 Vol 19
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ JAGRUTI S. PANDYA SAMBODHI तत्र वीरशृङगारयो रालम्वनै क्येन विरोधः तथा हास्यरौ द्र बीभत्सः संभोगस्य । वीरकरुणरौद्रादिभिविप्रलम्भस्य। (आलम्वनै क्ये) आश्रयै क्येन च वीरभयानकयो : । नैरन्तर्यविभावैक्याभायां शान्तशगारयोः । विधाप्यविरोधो वीरस्याद्भुतरौद्राभ्याम् । शृङ्गारस्याद्भतेन। भयानकस्य बीभत्सनेति । तेनात्र वीरशृङ्गारयोभिन्नालम्बनत्वान्न विरोधः । The readings हास्यरौद्रबीभसाः & संभोगश्च in K.P.D. should be corrected as हास्यरौद्रबीभत्सै & संभोगस्य respectively with the help of S.D. आनस्वनैक्येन ..... शृङ्गारयोः in K.D.P. is incorrect. S.D. presents correct reading as follows : आलम्बनैक्येन आश्रयैक्येन च वीरभयानकयोः । एकाश्रय. ....... etc. in K.P.D. is not proper. निबन्धेन विरोध is obviously incorrect. It should be corrected as निबन्धे न fant et: It may be a misprint. The text in S.D. is very clear. 14. K.P.D. Ullasa-VII. p. 110 on K.P. VII 64 : काले जानव्हयः कविक रभदन्तक्षणि ... षिस्मरस्म रस्मा भरपुलसं बहुः पश्य न गुण्ठनरजचरसेनाकलकलं जराजुरग्रन्थि द्रढयति रज्जुनां परिवृढः । See the Vratti on S.D. VII 30-31, p.446 : कपोले जानक्याः करिकलभदन्तद्युतिमुषि । स्मरस्मेरस्फारोडुमरपुलकं वक्रकमलम् । मुहुः पश्यद्धशृण्वनजनिचरसेनाकलकलं । जटाजूचग्रंन्थि द्रढयति रघूणां परिवृढः ।। The text in K.P.D. is not clear. It is read as a stanza - कपोले .... etc. in S. D. 15. K.P.D. Ullasa VII p. 111 on K.P.VII .65 : अत्रालम्बनविदेन (विभावेन) तत्रैव रसार्थतया स्मर्यमाणानां तदङ्गानां शोकोद्दीपकतया करुणानुकूलतया तदङ्गतेति भावः । See the vrtti on S. D. VII. 30-31, p. 443 :

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182