Book Title: Sambodhi 1994 Vol 19
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 32
________________ SAMBODHI JAGRUTI S. PANDYA निश्चिन्तोमृध्दवलि (मृदुरनिशं) कलापरो धीरललितः स्यात् । सामान्यगुणैर्भूयान् द्विजादिको धीरशान्तः स्यात ।। Read S.D. III. 34, p.94 : निश्चिन्तोमृध्दवलि (मृदुरनिशं) कलापरो धीरललितः स्यात् । सामान्यगुणैर्भूयान् द्विजादिको धीरशान्तः स्यात् ॥ K.P.D. Ullāsa-VII. p.109 on K.P.VII ६०-६२ : ...उपनिषद्रहस्यं ते समनन्तरोक्ता रसदोषाः क्वचिद्यत्र विभावानुभावमुखेन वचने वैशद्यप्रतीतिर्नास्ति। यत्र विभावानुभावकृतपुष्टिराहित्यमेवार्थगुणम् । Compare the Vrtti on S.D. VII- 29 p.442 : यत्रानुभावविभावमुखेन प्रतिपादने विशदप्रतीति स्ति, यत्र च विभावानुभावकृतपुष्टिराहित्यमेवानुगुणं तत्र व्यभिचारिणः स्वशब्देनोक्तौ न दोषः। S.D. has a better exppression than K.P.D. 10. K.P.D. Ullāsa VII.p.109 on K.P.VII 60-62 : अन्तः औत्सुक्यत्वरारूपानुभावमुखेन...झटिति प्रतीतिः । दुरापाभयादिनापि (१) सम्भवात् । क्रियो (हियो)-ऽनुभावस्य च व्यावर्तनस्य कोपादिनापि संभवः । साध्वससाहसयोस्तु स्तुतिभावादिपरिपोषस्य प्रकृतिरसप्रतिकूलप्रायत्वमित्येषां (गतम) । Compare the Vrtti on S.D. VII.29, p.442 : अत्रौत्सुक्यस्य त्वरारूपानुभावमुखेन प्रतिपादने संगमे न झटिति प्रतीतिः । त्वराया भयादिनापि संभवात् । हियोऽनुभावस्य च व्यवार्तमानस्य कोपादिनापि संभवात । साध्वसहासयोस्तु विभावादिपरिपोशस्य प्रकृतरसप्रतिकूलप्रायत्वादित्येषां स्वशब्दाभिधानमेव न्याट्यम् । K.P.D. text has so many misprints in it which could be corrected with the help of S.D. as underlined by us. 11. K.P.D. Ullasa - VII.p.110 on K.P. VII.63:

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