Book Title: Sambodhi 1994 Vol 19
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 41
________________ Vol. XIX, 1994-1995 31. 32. VIŚVANATHA'S... उच्चार्यत्वाद्यदैकत्र स्थाने तालुरदादिके । साद्दश्यं व्यञ्जनस्यैव श्रुत्यनुप्रास उच्यते ॥ देवक in K.P.D. may be a misprint. The S.D. is mentioned in the K. P. D. text, clearly by name. S.D. X 10, p. 484 reads as : K. P. D. Ullása IX p. 132 on K. P. IX. 84 : ....तथाविधोदाहरणे शब्दरेकविधैरेव भाषास्वविद्यास्वपि (?) वाक्यं यत्र भवेत्सोऽयं भाषासम इतीष्यतीति भित्रोऽलङकारः उक्तः । S.D. 37 शब्दरेकविधैरेव भाषासु विविधास्वपि । वाक्यं यत्र भवेत्सोऽयं भाषासम इतीष्यते ॥ It is a quotaion from S.D. भाषास्वविद्यास्वपि in K.P.D. should be corrected as भाषासु विविधास् as in K.P.D. Ullasa IX. p. 132 on K.P. P.IX.84: अस्य च (अत्र च ) स्वरन्ततिङन्तत्वेन प्रत्ययान्तरसाध्य चमत्कारविशेषाधानात् प्रत्ययश्लेषेगगना (गणना)। Read the Vetti on S.D. X.12, p. 487 : अस्य च भेदस्य प्रत्ययश्लेषेणापि गतार्थत्वे प्रत्ययान्तरासाध्यसुबन्ततिङन्तगतत्वे न विच्छित्तिविशेषा श्रवणात्पृथगुक्ति । The text in K.P.D. is not clear. The correction ( अत्र च ) for अस्य च in K. P. D. has no meaning. स्वरन्त in K.P.D. is obviously incorrect. It should be सुबन्त as in S.D. प्रत्ययान्तरसाध्य. in K. P. D. should read as प्रत्ययान्तरासाध्य as in S.D.

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