Book Title: Sambodhi 1994 Vol 19
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ Vol. XIX, 1994-1995 VISVANĀ THA'S... 'शशिशुभ्रांशु' इति द्वयोरपि । 'भाति सदानत्यागः' इति न द्वयोरपि । इति शब्दपरिवृत्तिसहत्वासहत्वाभ्यामस्योभयालंकारत्वम् । The K.P.D. has clearly mentioned S.D. by name but K.P.D. text is full of mistakes as underlined by us. They should each be corrected with the help of S.D., quoted as above. 36. K.P.D. Ullāsa x. p. 142 on K.P. X.89 : इह हि समुदितं पदं वाचकत्वं (वाचकं) इमनमनाद्य (इति मतमनूद्य) प्रकृतिप्रत्ययौ सुखानुबोधकादिति (सुखानुबोधकाविति) मतस्यैवाङ्गीकारेण व्यवहारः प्राच्यात्यं (प्रत्याय्यः) अन्यथा वत्कल्पबिवादेः प्रसङगः स्यात् न च वाद्यादय (क्यचादयः) इवाद्यर्थे ऽनुशिष्यन्ते । क्यचादयस्त्वांचारार्थे तथाहि, एते नाचारमात्रार्थाः किन्तु सद्रशाचारार्थाः । This may be compared with the Vrtti on S.D. X.19, pp.511-12 : वाचकत्वे वा 'समुदितं पदं वाचकम्' 'प्रकृतिप्रत्ययौ स्वस्वार्थबोधकौ' इति च मतद्वयेऽपि वत्यादिक्यङाद्यो:। साम्यमे वेति । यच्च के चिदाहुः -'वत्यादय इवाद्यर्थे ऽनुशिष्यन्ते, क्यडादयस्त्वाचाराद्यर्थे ' इति । तदपि न । न खलु क्यडादय आचारमात्रार्थाः, अपि तु साद्रश्याचारार्था इति । 37. K.P.D. Ullāsax.p. 144 on K.P. X. 92 : अत्र च निश्चयगर्भे संशये मार्तण्डप्रभावनिश्चयः, राजनिश्चये द्वितीयसंशयोत्थानासम्भवात् । Compare the Vrtti on S.D. X.35-36, p.531 : अत्र मध्ये मार्तण्डाद्यभावनिश्चयो राजनिश्चये द्वितीयसंशयोत्थानासंभवात् । K.P.D. has मार्तण्डप्रभावनिश्चयः while S.D. has मार्तण्डाद्यभावनिश्चयः, which is better. 38. K.P.D. Ullāsa X., p.150, on K.P. X .108 स एक इत्यादौ तनुहरणेऽपि बलाहरणानि निमित्तं निरूप्यमाणमपि (बलहरणं तनुहरणे निमित्तम्) त्वर्विज्ञान (?) मित्यचिन्त्यम् । See the Vrtti on S.D.X.67, p.590 :

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182