Book Title: Sambodhi 1994 Vol 19
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 39
________________ Vol. XIX, 1994-1995 VISVANATHA's... See the Vrtti on S.D. VIII 9-10, p.459: 'सुचरणविनिविष्टैर्नूपुरैर्नर्तकीनां झणिति रणितमासीत्तत्र चित्रं कलं च । अत्र च तन्मतानुसारेण रसानुसंधानमन्तरेणैव शब्दप्रौढोक्तिमात्रेणौजः। Both the texts have similarity but K.P.D. has स्वचरण... while S.D. has सुचरण... and K.P.D. has झटिति while S.D. has झणिति. शब्दप्रौढिमात्रेमौजः in K.P.D. should The rest is identical, excepting that read as शब्धप्रौढोक्तिमात्रेणौजः as in S.D. 27. __K.P.D. Ullasa VIII p. 119 on K.P. VIII. 72 : क्रमः क्रियासन्ततिः, कौटिल्यं विदग्धचेष्टितं, अनुल्बणत्वमप्रसिध्दवर्णनाविरहः, उपपत्तिरुपपादकयुक्तिन्यासः। एषां योगः संमेलनं स एवं रुपं यस्याः घटनायाः तद्रू पो विचित्रार्थत्वमात्रं अनन्यसाधारणरसोपकारित्वातिशयविरहानुगुण इति भावः । See the Vrtti on S.D. VIII 16, p.463 : तत्र क्रमः क्रियासंततिः, विदग्धचेष्टितं कौटिल्यम्, अप्रसिध्दवर्ण नाविरहोऽनुबणत्वम्, उपपादकयुक्तिविन्यास उपपत्ति, एषां योगः संमेलनं स एव रूपं यस्या धयनायास्तद्रूपः श्लेषो वैचित्र्यमात्रम् । अनन्यसाधारणरसोपकारित्वातिशयविरहादिति भावः । Both the texts are almost identical but the word wat after 29: is missing in K.P.D. and the K.P.D. text has विरहानुगुण for विरहात् of S.D. एवं for एव in K.P.D. is an obivous misprint. 28. ___K.P.D. Ullasa VIII p.119 on K.P. VIII 72 : अत्र दर्शनादयः किया उपपत्यसमर्थनरूपं कौटिल्यं लोकसंव्यवहाररुपमनुल्बणत्वम् । एकासनसंस्थिते पश्चादुपेत्य नयने निमील्य ईषद्वक्रितकं धर इति चोपपादकानि । एषां योगः । अनेन च वाक्योपयत्तिग्रहणव्यग्रतया रसास्वादनं व्यवहितप्राय इत्यस्यानुगुणता । See the Vrtti on S.D. VIII.16, pp.463-64 : अत्र दर्शनादयः क्रियाः, उभयसमर्थनरूपं कौटिल्यम्, लोकसंव्यवहाररुपमनुल्बणत्वम,

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