Book Title: Sambodhi 1994 Vol 19
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 35
________________ Vol. XIX, 1994-1995 VISVANA THA'S... अत्रालम्बनविच्छेदे रतेररसात्मतया स्मर्यमाणानां तदङ्गानां शोकोद्दीपकतया करुणानुकूलता । The correction - (विभावेन) as in K.D.P. is not required, but it should be corrected with the help of S.D. or it can read : अत्रालम्बनवि(च्छे) देन........ etc. 16. K.P.D. Ullasa - VIII.p.111 on K.P. VII.65: ....प्राकप्रतिपादितरुपस्य समूहालंबनात्मकपूर्णघटानंदस्वरूपस्य रसान्तरेण तथाभूतेन न विरोधो नाप्यङ्गाङ्गिभावः, एकवाक्यनिवेशप्रादुर्भावयोगपद्यविरहात् परस्परोपमर्दकत्वानुपपत्तेः । द्वयोरपि पूर्णत्वेन...तंद्र (?) विश्रामग़हित्याभावादिति भावः । Comparethe Vrtti on S.D. VII.30-31, pp.445-46 : ननु समूहालम्बनात्मकपूर्णघनानन्दरुपस्य रसस्य ताद्दशेनेतररसेन कथं विरोधः संभावनीयः । एकवाक्ये निवेशप्रादुर्भावैल्गपद्यविरहेण परस्परोपमर्दकत्वानुपपत्तेः । नाप्यङ्गाङ्गिभावः द्वयोरपि पूर्णतया स्वातन्त्रेण विश्रान्ते ।. घटानंद.... in K.P.D. should read as घनानद.... as in S.D. नाप्याङ्गिभावः in K.P.D. should be properly placed before द्वयोरपि as in S.D., and then we should read - द्वयोरपि पूर्णतया स्वातन्त्र्ये ण विश्रान्ते -as in S.D. 17. K.P.D. Ullasa VII. p.112 on K.P. VII.65: ....चण्डिदासपंडितानां मते तु खण्डरसनाम्ना यदाहुः - अंगं संसयत्यङ्ग स्यात् (?) सांतवे । नास्वाद्यते समग्रं यत्तः खण्डरसः स्मृत ॥ इति । See the Vrtti on S.D. VII.30-31, p.446: अस्मत्पितामहानुजकविपण्डितमुख्यश्रीचण्डिदासपादानां तु खण्डरसनाम्ना । यदाहु : - 'अग बाध्योऽथ संसर्गी यद्यऽगी स्याद्रसान्तरे । नास्वाद्यते समग्रं तत्ततः खण्डरसः स्मृतः ।।' इति । The quotation is found in both the texts but S.D. has a clearer expression than that in K.D.P., which contains mistakes as indicated by us. 18. K.P.D. Ullasa - VIII-p.113 on K.P. VIII.66:

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