Book Title: Sambodhi 1994 Vol 19
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 29
________________ Vol. XIX, 1994-1995 VISVANA THA'S... The correction (यदुक्तं) in the K.P.D. seems improper. यत्पादान्ते... of the S.D. offers a better reading. (विकसितसहकारो यत्र) in the K.P.D. is also amusing. The remark in S.D. is clear. K.P.D. Ullasa - VII.p.100 on K.P. VII.53-54: ....भार्गवनिन्दाप्रवृत्तस्य परशुनिन्दा घटत इत्युक्तं तदयुक्तम । परशुनिन्दामुखेन भाकुबभार्गवनिन्दाया अधिकवैदग्धी बहा (तेन सहृदया एव) प्रमाणम् । Compare the vrtti on S.D.VII 5-8 p.406 : अत्र भार्गवनिन्दायां प्रयुक्तस्य मातृकण्ठच्छेदनस्य परशुना सह संबन्धो न युक्त इति प्राच्याः । परशुनिन्दामुखेन भार्गवनिन्दाधिक्यमेव वैदग्ध्यं द्योतयतीत्याधुनिकाः । भार्गवनिन्दाप्रवृत्तस्य & भार्गवनिन्दायां प्रयुक्तस्य differ only in words. S.D. has a clear expression. K.P.D. Ullasa VII. p. 101 on K. P. VII 53-54: इह केऽप्याहुः पदशब्देन वाचकमेव प्रायो निगद्यते, न च तत्रावचकता निर्विवादास्वातन्त्र्येणार्थबोधविरहादिति यथा 'द्वयं गतमनत्यादौ त्वमित्यनन्तरं चकारार्थपदोपादानादकमतः तथात्रापीति ....। See the Vrtti on S.D. VII 5-8,p.411 : इह केऽप्याहुः पदशब्देन वाचकमेव प्रायो निगद्यते, न च नबो वोचकता निर्विवादात्स्वातन्त्र्येणार्थबोधनविरहात् इति यथा, द्वयं गतइत्यादौ त्वमित्यनन्तरं चकारानुपादानादक्रमता तथात्रापीति...। Both the texts have close resemblance. K.P.D. text could be corrected with the help of S.D. तत्राववाचकता should read as नजो वाचकता & अक्रमत: should read as अक्रमता, as in S.D. 4. K.P.D. ullāsa VII.p.102 on K.P. VII - 55-57 : ननु वाच्यस्यानभिधाने कमपराधन (कथमवनियते) इत्यादावपरभाव, इह त्वेवकारस्येति कोऽनयोर्भेदः। अत्राह नियमस्यावचनमेव पृथग्भूतं नियमपरिवृत्तेविषय इति । तनु (ननु) तथा सत्यपि द्वयोः

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