Book Title: Sambodhi 1983 Vol 12
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 123
________________ 118 Jagrin runuyu Compare-the Vṛtti on S.D. 3 186 ..... एतैरभिव्यक्तः सहृदयविषयो रतिभावः शृङ्गाररसरूपता भजते । 24 K.P.D ullása 4, P 84 on K.P. 429 द्वयोः प्रणयमानः स्यात् प्रमोदेऽपि प्रेम्णः कुटिलगामिस्वारकोवो यः कारणं In the new Ed. of K. P.D. 'सु' is added before 'महत्यपि' with the help of S.D., but af is also continued after g, which is incorrect महत्यपि । विना ॥ इतेि । See the similarity with SD 3.198B-199 A. द्वयोः प्रणयमानः स्यात् प्रमोदे सुमहत्यपि । प्रेम्णः कुटिलगामिवात्कोपो यः कारणं विना ॥ 25. K. P.D ullasa 4, P. 86on K.P. 429 agar a "भावी भवनभूत" इति । "त्रिषा स्यात्तत्र कार्यज" इति कार्यानातः प्रवासभेदः । Here-'भवनभूत' is corrected as 'भवन्भूत' in the new Ed Read S.D. 3.208 B भावी भवभूत affaधा स्यात् तत्र कार्यजः || 26 KPD ullasa 4, P 92 on K.P. 4.30 स्रसूत्रवृत्या भावानामन्येषामनुगामकः । न तिरोधीयते स्थायी तैरसौ पुष्यते परम् ॥ इति । This quotation is not found in the new Ed. of K.P.D. It is the same with the Vṛtti on S.D. 3.174 27. K.P D. ullasa 4, P.92 on K.P. 4.30. रतिलक्षणम् । यथा मम साहित्यदर्पणे.. रतिर्मनोऽनुकूलेऽर्थे मनसः प्रवणयितम् इति । The reading of प्रवणायितम् for प्रवणयितम् in the new Ed, is supported by S.D Read S.D 3.176 A रतिर्मनोऽनुकूलेऽर्थे मनसः प्रवणायितम् । 28 K.P D. ullasa 4. P. 94 on K.P. 4.34 विशेषादाभिमुख्येन चरन्तो व्यभिचारिणः । स्थायिन्युन्मग्ननिर्मग्नाः कल्लोला इव वारिषौ ॥ This quotation is from Daśarūpaka 47, which is also found in S. D. 3.140. 29. KP.D. ullasa 4, P. 94 on K. P. 4.34 तत्र तत्रज्ञानापदीर्ण्यादिभिश्चिन्ताग्लानिर्देन्यादिकृत् स्वावमाननं निर्वेदः ।

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