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दलसुख मालवणिया
प्रश्न पूछे थे उनका समावेश किया गया था। किन्तु बाद में उसमें विषय की व्यवस्थित विचारणा भी जोखी गई जिससे कि वह एक व्यवस्थित विचार या शास्त्र बन जाय और
आगे बढ़ती हुई विचारणा का भी समावेश उसमें हो जाय । इस दृष्टि से देखा जाय सो विचारणा के प्राचीन स्तर और उत्तरकालीन स्तर-ये दोनो एक ही ग्रन्थमें उपलब्ध हैं । यही सूचित करता है कि भगवती में बादमें बहुत कुछ जोघा गया है । यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जब मैं सकलना की बात कहता हूँ तो बलभी लेखन से तात्पर्य नहीं हैं । वलभी लेखन से पूर्व पाटलिपुत्र, मथुरा और वलभी में होनेवाली वाचना में कौन से ग्रन्थ सकलित किये गये इसकी प्रामाणिक सूची हमारे समक्ष नहीं है । विद्यमान भगवती किस सकलना का परिणाम है-यह भी निश्चित रूप से फाहना कठिन है, ऐसी स्थिति में जैन विचारणा का जो स'कलना काल में परिनिष्ठित रूप था यह उसमें शामिल होकर प्रामाणिक बन जाय और आगम या जिन-प्रवचन होने की प्रतिष्ठा को प्राप्त कर सके यह प्रयोजन बाद में अनेक अंश जोड़ने का रहा होगा । यह कहा जा सकता है कि संकलना काल तकका जो आगमिक विचार है वह भगवती में पूरी तरह स्थान प्राप्त कर चुका है । अतएव आगमों के स'कलना काल तककी विचार प्रगति जानने का यह अनुगम साधन है । अनुपम इस लिए है कि इसमें पुरानी और नई ये दोनों विचारणाएँ एक ही ग्रन्थ में मिल जाती हैं । विवेकी विद्वान परिभाषा का परिवर्तन किस प्रकार हुआ है यह सहज ही जान सकता है । यह कहा जा सफता है कि तस्वार्थसूत्रगत जो व्यवस्थित विचारणा है उसका पूर्वरूप भगवतीमें मिल जाता है । किन्तु यह भी ध्यान देने की बात है कि भगरती से तस्वार्थसूत्रकी विचारणा अग्रिम कदम है ।
भगवती के समय का विचार करें तो उसमें कुछ बातें तो ऐसी है जो महावीर समकालीन ही हैं और अन्य ऐसी हैं जो सकलना काल तक उसे ले जाता है अर्थात् वीर निर्वाण के एक सहस्र वर्ष तक । किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि भगवती भ. महावीर के निर्वाण के बाद एक सहस्रवर्ष की रचना है | यह तो एक संग्रह ग्रन्थ है अतएव तत्तत् विषयों की चर्चा के स्तर को देखकर ही समय चर्चा सगत हो सकती है । अधिकांश अर्थात् प्राथमिक २० शतक तक का ऐसा अश है जो ई० पूर्व दो शतक के पूर्व के हैं ऐसा कहा जा सकता है । केवल कुछ वाक्य जैसे कि भुत का विच्छेद वी० नि० एक सहस्रवर्ष के बाद होगा--- ऐसे हैं, जो बादमें भी प्रक्षिप्त हुए है।