Book Title: Sambodhi 1983 Vol 12
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 273
________________ जैनग्रन्थावली1 के अनुसार पदमसुन्दर ने रायमल्ला-युदय की रचना संवत् १६९५ (1559 A.D.) में की और पवनाथचरित की रचना सवत् १६२५ (1569 A. D) में की परन्तु विन्टरनिज का कहना है कि पदमसुन्दर ने पार्वनाथचरित्र की रचना सन १५६५ मे की थी। अकबरशाही शृंगारदर्पण की प्रति का लेखनकाल सन् १५६५ है । अतः इस कृति की रचना इस तिथि के पूर्व की होनी चाहिए । यद्यपि प्रो० दशरथशर्मा" अपने पत्र में, विभिन्न तर्कों के साथ इसका रचनाकाल सन् १५६० का निश्चित करते हैं। उनका यह भी कहना है कि रायमल्ला युदयकी रचना परमसुन्दर ने ई. १५५९ में की है अतएव उस समय तक तो वे जीवित थे ऐसा मानना चाहिए । सम्राट अकबर संस्कृत साहित्य के प्रेमी के रूप में सुप्रसि रहे हैं । उनके मन्थागार में संस्कृत साहित्य की कई पुस्तकें परशियन भाषा में अनुदित थी । मुगल बादशाहो के समय जैन आचार्यो' को आदरयुक्त प्रश्रय प्राप्त रहा है। आनन्दराय ( आनन्दमेरु ) जो पद्मसुन्दर के गुरु पद्मेरु के भी गुरु थे, उन्हें बादशाह बाबर और हुमायूँ के समय में आदर प्राप्त था । उसी गुरु परम्परा में आगे चल कर श्रीपद्मसुन्दर को अकबर द्वारा आदर नोट : यहाँ यह दर्शनीय है कि दोनों पुतस्को के विवरण में भेद है । सूरीश्वर और सम्राट में लिखा है कि हीरविजयसूरि अकबर से मिले और अकबर ने अपने पुत्र शेखजी से मैंगवा कर, पद्मसुन्दर द्वारा प्रदत्त पुस्तकों को उन्हे भेट में दो परन्तु प्रो. दशरथ शर्मा ने अपने लेख में लिखा है कि पद्मसुन्दर की पुस्तकों का संग्रह सलीम के पास था और सलीम ने हीरविजयसूरि को दिया था । यही यह भी द्रष्टव्य है कि हीरविजयसूरि बादशाह अकबर के दरबार में सवत१६३९ में आए थे अत: पद्मसुन्दर का स्वर्गवास इससे पूर्व होना सिद्ध होता है । 1. जैनग्रन्थावली, श्री जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स, बम्बई, सं० १९६५, पृ० ७७ । 2. हिस्ट्ररी ओफ इन्डियन लिटरेचर, मोरिप विन्टरनित्ज, भाग २, दिल्ली, १९७२, पृ० ५१६ । 3. अकवरशाही शृङ्गारदर्पण, पृ० २३ । 4. प्रो० दशरथशर्मा का लेख, के. माधवकृष्णशर्मा द्वारा उद्धृत, अकबरशाही शुगारदर्पण पृ. २३ । 5. "He had been alive in 1559 A. D., the date of his रायमल्लाभ्युदय", प्रो० दशरथशर्मा के लेख का उद्धरण, सम्पादक के. माधवकृष्ण शर्मा की पुस्तक 'अकबरशाही शृङ्गारदर्पण, ' पृ० २३ । 6. “We might perhaPs add that he enjoyed during this period also the company of literati like Padmasundar and was more fond of literature than philosophy" ___अकवरशाही .शारदर्पण, २४ । 7. के० एम० पनिकर द्वारा लिखित प्रस्तावना, अकबरखाहा शगारदर्पण, पृ०७ ।

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