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प्रस्तावना
प्रतिपरिचय प्रस्तुत श्रीपार्श्वनाथमहाकाव्य का संशोधन प्राचीन हस्तलिखित दो प्रतियों की सहायता से किया गया है । इन दो प्रतियों में से भी विशेषतः शुद्ध पाठ 'अ' प्रतिका है । दूसरी 'व' प्रति का पाठ प्राय: अशुद्ध है । अत: 'अ' प्रति का ही विशेष रूप से उपयोग किया गया है।
'अ' प्रति : लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद में सुरक्षित यह प्रति मुनिश्री पुण्यविजयजी के संग्रह की है। इसका क्रमाक ३७६९ है । यह प्रनि कागज पर लिखी हुई है । इसकी लिपि नागरी है। इस प्रति का परिमाण २५. ७४११ से० मी० है । इस प्रति में कुल ४२ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र मे ११ पनियाँ हैं । मात्र अन्तिम पृष्ठ में काव्य पूर्ण हो जाने के कारण से ६ पक्तियां आई हैं । प्रत्येक पक्ति में अक्षरों की संख्या समान नहीं है । पक्तियों मे अक्षरों की संख्या ३४ से ४० तक पाई जाती है । प्रति की अवस्था अच्छी है । इस प्रति का लेखनकाल १७ वौं शती को उत्तरार्ध है। काव्य के अन्त में पुष्पिका नहीं है। प्रथम सर्ग के अन्त में " इति श्रीमत्परापरपरमेष्ठिपदारविन्दमकरन्दसुन्दररसास्वादसम्प्रीणितभव्यभव्ये ५० श्रीपद्ममेरुविनेय पं० श्रीपदमसुन्दरविरचिते श्रीपार्श्वनाथमहाकाव्ये प्रथमः सर्गः:" लिखा है। इसी प्रकार सम्पूर्ण काव्य में, प्रत्येक सर्ग के अन्त में लिखा गया है ।
'ब' प्रतिः बड़ौदा की ओरिएन्टल सेन्ट्रल लाइब्रेरी की इस प्रति का क्रमांक २२१३ है। यह प्रति भी कागज पर लिखी हुई है । इसकी लिपि नागरी है। इसका परिमाण २४.८x११ से० मी० है । प्रति में कुल ३४ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पक्तियां हैं तथा अतिम पत्र में ११ पक्तिया हैं । प्रत्येक पत्र के बीच में षट्कोण के आकार में जगह खाली है । पक्तियों में अक्षरों की संख्या असमान है। ३२ अक्षर से लेकर ४२ अक्षर तक की संख्या पाई जाती है । प्रति की अवस्था अच्छी है । परन्तु अधिकतर पाठ अशुद्ध है। प्रति का लेखनकाल १७ वीं शती का उत्तरार्ध है। काव्य के अन्त में पुष्पिका नहीं है । मात्र काव्य की समाप्ति की सूचना 'अ' के समान ही दी गई है।