Book Title: Sambodhi 1983 Vol 12
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 280
________________ पदार्थ चिन्तामणिचारुसुन्दरः पकाशशब्दार्ण बनामभिस्त्वयम् । जगज्जिगीषुर्जयनात् सतां मुखे तर गरगो विरराम पचमः ।।६८|| इति श्रीमन्नागपुरीयतपागच्छनभोमणिपण्डितोत्तमश्रीपद्ममेरुगुरुशिष्य पं० श्रीपद्मसुन्दरविरचिते सुन्दरप्रकाशे पंचममस्तरङ्ग. पूर्णः। तत्समाप्तौ च पूर्णः श्रीसुन्दरप्रकाशो ग्रन्थः । नमः श्रीवाग्देवतागुरुचरणारविन्दम्याम् । ग्रन्थाग्रम् ।।३१७९।। एकत्रिशच्छता नि अष्टसप्तत्यधिकानि ग्रन्थमानम् । शुभं भवतु । कल्याणमस्तु । रायमल्लीभ्युदय महाकाव्य ला. द. विद्यामदिर. अहमदाबाद में स्थित मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराज से प्राप्त प्रेसकापियों में से एक आर्ण कापी पद्मसुदरकत रायमल्लाभ्युदय' महाकाव्य को प्राप्त होती है। इस कापी में दो सर्ग लिखे हुए हैं । प्रथम सर्ग पूर्ण है तथा आदि-अन्त युक्त है। इस सर्ग में ११० श्लोक हैं । प्रथम सर्ग का नाम "युगान्तरकुलकरोत्पत्तिवर्णन" है । द्वितीय सर्ग पूर्ण है. इममें ११५ श्लोक मिलते हैं । यह कापी किस प्रति के ऊपर से की गई है इस विषय पर कोई भी माहिती प्राप्त नहीं होती है । कुल सर्ग कितने हैं यह भी पता नहीं चलता। इस काव्य में जैनों के २४ तीर्थकरों के जीवन-चरित का वणन किया गया है । आदि- स श्रीमान्नाभिमूर्विलसदविकलब्रह्मविद्याविभूति-- प्रश्लेषानन्दसान्द्रद्रवमधुरसुधासिन्धुमग्नानुभूति : । यस्यान्तवैरिवारेन्धनदहन शिखाधूमभूमभ्रमामा भाअन्ते मूर्ध्नि नीलच्छविजटिलजटाः पातु वः श्रीजिनेन्द्रः ।। १ ।। प्रथम सर्ग का अन्त : इति श्री परमात्मपरमपुरुषचतुर्विशतितीर्थंकरगुणानुवादचरिते पं० श्रीपममेरुविनेय ५० श्रीपद्मसुन्दरविरचिते साधुनान्यात्म जसाधुश्रीरायमल्लसमभ्यथिते रायमल्लाभ्युदयनाग्नि महाकाव्ये युगान्तरकुलकरोत्पत्तिवर्णन नाम प्रथमः सर्गः ।। १ ।। श्रीनाभिनन्दनजिनो वृजिनद्रमाली, व्यालीढबुध्नपरिणाहभिदा कुठारः । यो विश्वविश्वजनबन्धुरनतबोधः, श्रीरायमल्लभविकस्य शिवं तनोतु ।। १ ।। ।। आशीर्वादः ।। छ ।

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