Book Title: Sambodhi 1983 Vol 12
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 274
________________ प्राप्त हुआ । इसी प्रकार पद्मसुन्दर के पश्चात् हीरविजयसरि अकबर के दरबार में आदर के पात्र बने। ___ अकबर के समय, उनके राज्य में राजमन्त्रिी एवं दरबारियों में कई विद्वान् उपस्थित थे। मुख्यत: हम दो के नामों से तो भली प्रकार परिचित हैं ही- पहले राजा टोडरमल, रेवन्युमिनिस्टर, जिनका धर्मशास्त्र पर लिखा ग्रन्थ आज भी 'संस्कृत लाइबरी, चीकानेर में मौजूद है । दूसरे पृथ्वीराज राठौर जो आज हिन्दी कवि की हैसियत से ही जाने जाते हैं उस समय के माने हुए संस्कृत भाषा के विद्वान् भी थे । अफवर के दरबार के साथ जैन विद्वानों का मेलजोल एक ऐतिहासिक सत्य है । युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रमूरि, एक विख्यात जैन साधु, सन् १५९१ में अकबर द्वार दरवार में बुलवाये गये थे और उनकी साहित्यिक कृतियों पर अकबर ने उन्हें 'युगप्रधान' का खिताब दिया था । हर्षकीर्तिसूरि की धातुतर गिणी की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि जोधपुर नरेश मालदेव द्वारा भी पद्मसुन्दर सम्मानित हुए थे। नागपुरीयतपाच्छ की पट्टाविल के एक उल्लेख के अनुसार पदमसुन्दर ने अकबर के : किसी गर्वित ब्राह्मण को वाद-विवाद में हरा कर अपनी विद्वत्ता का सिक्का जमाया था और सम्राट का मन जीत लिया था तथा कतिपय उपहार भी प्राप्त किये थे । उन्हे' उपहार में माम मिले थे, एसे उल्लेख प्राप्त होते हैं । अत: यह धारणा निर्धारित होती है कि वे प्रथम पडित रहे, और बाद में उन्होंने जैनी दीक्षा ली होगी । 1. अकबरशाही शगारदर्पण, पृ० २० देखिए मान्यो बाबरभूभुजोऽत्र जयराट् तद्वत हमाऊ नृपो - त्यर्थ प्रीतमना: सुमान्यमकरोदानंदरायाभिधम् ।। तद्वत्साहिशिरोमणेरकबरक्षमापालचूडामणे मन्यिः पडितपद्मसुन्दर इहाभूत पंडितनातजित् ॥ २॥ 2. के. एम० पनिकर द्वारा लिखित प्रस्तावना-अकबरशाही ण, पृ० ७ एवं ८ । 3. वही । 4. साहे: संसदि पदमसुन्दरगणिर्जित्वा महापण्डित क्षीमग्रामसुखासनाद्यकबरश्रीसाहितो लब्धवान् । हिन्दूकाधिपमालदेवनृपतेर्मान्यो वदान्योऽधिकं श्रीमद्योधपुरे सुरेप्सितवचा: पद्माह्वय: पाठकः ॥ -हर्ष कीर्तिसूरि की धातुतर गिणी, ला० द० विद्यामंदिर, अहमदाबाद, प्रति क्रमांक १८८२, पत्र ७६ । अकबरशाही-शृंगारदर्पण, पृ० २२ । "He was successful in a literary contest at the court of Akbar and was honoured with gifts of villages etc." हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर' एम० कृष्णमाचारी, दिल्ली. पावली समुच्चय, भाग २, गुजराती संस्करण, पृ० २२४ ।

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