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एक नयी नियुक्ति
समणी कुसुमप्रशा
वैदिक साहित्य में निरुक्त अति प्राचीन व्याख्या पद्धति है । जैन आगमों भी नियुक्ति सबसे प्राचीन पद्यबद्ध रचना है । स्त्रय भद्रबाहु ने नियुक्ति की परिभाषा करते हुए कहा है - "निज्जुत्त ते अस्था ज बद्धा तेन होई निज्जुत्ती" अर्थात् सूत्र के साथ अर्थ का निर्णय जिसके द्वारा होता है वह नियुक्ति है ।
नियुक्तिकार कितने हुए ? इस विषय में अभितक इतिहासज्ञ एकमत नहीं हुए है । प्रमुख रूप से भद्रबाहु का नाम विख्यात है । इसके अतिरिक्त गोविंद आचार्य का उल्लेख भी मिलता है जिन्होंने गोविंदनियुक्ति की रचना की ।
नियुक्ति की संख्या के बारे में भी अभी तक निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । भद्रबाह ने आवश्यक नियुक्ति में 10 नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की इसके अतिरिक्त भी पिण्डनियुक्ति पंचकल्पनियुक्ति, निशीथनियुक्ति आराधना और समक्त नियुक्ति का भी स्वतत्र अस्तित्व मिलता है ।
नंदीसूत्र में प्रत्येक अंगआगम के परिचय में संखेज्जाओ निजुत्तीओ का उल्लेख इस बात की ओर संकेत करता है कि प्रत्येक आगम पर संख्येय नियुक्तियां लिखी गयीं । लेकिन काल के अन्तराल में वे लुप्त हो गयीं अथवा सूत्र के साथ जो अर्थागम लिखा गया उसे ही नियुक्ति की सशा से अभिहित किया हो ।
पिछले वर्ष नियुक्ति का कार्य करते हुए लालभाई दलपतभाई विद्यामदिर में एक हस्त प्रति मिली जिसमें दशवकालिक की अति सक्षिप्त नियुक्ति है। पंडित दलसुखभाई-मालवणिया के कथनानुसार यह नियुक्ति किसी अन्य आचार्य द्वारा रचित होनी चाहिए ।
इसमें कुल 9 गाथार हैं जिनमें चार गाथाएँ मूल दशवकालिक नियुक्ति की है तथा पाँच गाथाए स्वतंत्र रचित हैं । प्रारम्भिक चार गाथाओं में कर्ता, रचना का उद्देश्य तथा रचनाकाल को उल्लेख है । अन्तिम पाँच गाथाओं में चूलिका की रचना के पीछे क्या इतिहास रहा है, इसका उल्लेख मिलता है । यद्यपि यह घटना भगस्त्यसिंहचणि जिनदासपूर्णि तथा हारिभद्रीय टीका किसी में भी नहीं मिलती लेकिन इस नियुक्ति से इस घटना की प्रामाणिकता शात होती है ।
गुजरात युनिवर्सिटी द्वारा आयोजित all India orientle confrence में पदा गया शोध पत्र।