________________
रसेश जमीनदार
३१ लेख-संदोह को समयावधि
समयावधि की दृष्टि से हम देखे तो प्रथम अथ में विक्रम संवत की चारहवीं सदी में लेकर बीसवीं सदी तक के छपे हुए हैं जिन में से ५६५ लेखों में तिथि का स्पति है, ग्यारह लेखों में तिथि का वाचन अस्पष्ट है और शेष लेखों में तिथि का कोई निदेश पाया जाता नही है । सब से पुराना लेख विक्रम संवत १११२ का है और अतिम लेख १९८७ का है । दूसरे प्रथ मैं विक्रम संवत की ग्यारहवी सदी से बीसवीं सदी के लेख हैं, जो कि एक लेख वि. स. ७४४ (लेखाक ६६५, भाग ५) का है । वि. स. १०१७ से लेकर १९७७ तक के लेल समाविष्ट हैं ।
३२ अभिलेखों का आन्तरिक स्वरूप
इन दोनों ग्रंथों में संगृहीत सभी लेख श्वेतांबर जैन मंदिरो के सिलसिले में हैं। ये सभी लेख धातुप्रतिगा, आरसप्रतिमा मदिर के बारशाख, स्तंभ, चोकी, दिवारे, छत इत्यादि पर खुदे हए मिले हैं । कई लेख बडी शिलाओं पर प्रशस्ति रूप खुदे गये हैं । कई लेख पद्य में हैं और छंदोबद्ध हैं। ज्यादतर लेख गद्य में हैं और प्रकार में छोटे हैं । बहुत कम लेख बडे हैं। सभी लेख अध्ययन के लिये उपयुक्त नहीं है | जो लेख सतिथि है, वे राजकीय इतिहास और संस्कृति के निरूपण की दृष्टि से उपयोगी हैं । लेकिन सभी लेखों की विषयवस्तु धार्मिक होने के कारण राजकीय इतिहास के लिये पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती नहीं है, फिर भी सांस्कृतिक इतिहास के आलेखन के लिये छोटी मोटी कई सामग्री हमे इन लेखों के अध्ययन से उपलब्ध होती है। इस दृष्टि से गर्बुदगिरि और उसके आसपास के विस्तार का एक हजार साल का सांस्कृतिक चित्र हम पा सकते है। ३३ भाषा के सदर्भ में
भाषा की दृष्टि से भी इन लेखों का अध्ययन आवश्यक है। ये सभी लेख संस्कृत में, गुजराती में और संस्कृत मिश्रित गुजराती मे खुदे गये हैं। लिपि, छन्द, भाषावभव, व्याकरण इत्यादि के बारे में हमें इस से जानकारी प्राप्त होती है और एक हजार साल में इस क्षेत्र में विकास की गति कैसी रही, उसका पता हमें लगता है।
४.१ 'श्री अबुद-प्राचीन-जैन-लेख-संदोह का परिचय
प्रथम ग्रथ में संग्रहीत लेखो का सदी अनुसार विभाजन इस तरह का है: बारहवीं सदी के १५, तेरहवीं सदी के १२२, चौदहवीं सदी के १५५, प'द्रहवीं सदी के ९६, सोलहवीं सदी के ४२, अहारहवीं सदी के सिर्फ २४ और उन्निसवी तथा बीसवीं सदी के क्रमशः ८ और ७ लेख मिले हैं । शेष लेख बिना तिथिनिर्देश प्राप्त हुए हैं।
हस ग्रंथ से हमें आचार्य-साधुओं के ३७३ और साध्वीओ के ९ नोम प्राप्त होते हैं। धर्मघोषसूरि के शिष्य ज्ञानचंद्रसूरि का नाम ३८ लेखों में उल्लिखित है। ३५ गच्छों के नाम