Book Title: Sambodhi 1983 Vol 12
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 268
________________ २४ कृष्ण- क्रीडित जांणी वेदन आपणी, सवि मिलो खउलीय लिड दोरड स्वामी! तूं जिसगु, अपार विसयु संसार छड़ कोरड ||९४ मेहल मंदिर माली धन अनई छोरू ति वाली बहू airs एक as faar न कहि नई, ते शून्य सूकी सहू छांडी आस, हैइ मनोरथ रह्या, जीवी जि जांणिउ नहीं चाल आ भावि एकलउ जि, वलतु गिउ को न जाणइ किहीं ॥९५ एती चाड करे निदानि गरुआ गोविंद ! लक्ष्मीधरा ! raja! अनंत! कृष्ण ! सुणिजे, श्रीकांत! पीतांबरा ! | लागूं पागि वली बली चलवली, स्वामी ! मया तूं करे आवे अच्युत ! अंत-कालि जमलउ, हूं राखिउ सांभरे ॥९६ कृपाल ! गोपाल ! दयाल ! माधवा ! दीनाश्रया-पालक राम! राघवा ! | मुरारि संसारि अपार ऊभगा विश्राम दिइ स्वामिन! पागि लागा ॥९७ भव जलनिधि तरेवा राम नामिहं जपीजइ पर-धन पर निंदा दान- शोचा न कीजइ । तृण एक छल- भावि कोइ वंची न लीजह विविध फल- प्रकार राम-पूजा करीजइ ॥ ९८ ३. क. व्यइ. ख. जाणे, खुली ४. क. छि ९५. ४. क. ख. भव. ९६. १. क. गिरूआ, ख. ग. ए तू. ९७. ४. क. यह स्वामिन् पायि छू लगा, खा. पागि छू लगी. ९८. १. क. नामि, ख भवनिधि तरिवानहं जपीह २. This is third line in r. The second line reads : नितु मनि करुणा शु सत्यधम्मिई तपीई. ख. शोचा. ३. This is fourth line is खा.

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