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गाउल-कान्ह-विरचित
जाणे दानि करी अपार तेह-नी जिह्वा छति सिउं कर भावाभाव-विनाद-लालस-मिसई श्रीकृष्ण जे न स्मरइ ।।९०
तूमइ देव दयां कि दीन वचने, को भान भोलइ पणइ केहां संस्कृत गीत गद्य-रचना, जु देव-हीना भणइ । जाणउ जे जम आपणी रुचि रमु, निंदा न कहि-नी करु वांछा पुत्र-कलत्र-सौख्य-सरसी, तु कृष्ण हैई स्मरु ॥९१ जाणी ज्ञानवती न निर्मल कला, सर्वार्थ जे सीझवह कांता कोमलडी सु-लील न मिली, जे के गुणे रीझवइ । हा ! हा ! हा! हव झूरतां जि भमता गिउ जन्म आलई वही है ! है ! है ! हव जीतूआ! स्मरि किम्हइ श्रीकांत हैइ सही ॥९२ दीठा देव अनेकि अंतर हैइ, सानंद जे-सिउ मिल्या पाली प्रीति किसी न तेह सरसी, तु रंग ते-सिउ' टल्या । कांता संशय-रूप कूकट-रचना, नुहइ कुणई आपणी । बीजु कोइ नथी शरण्य तह्म तु निर्वाणि छांडया-भणी।।९३
हुइ रत्न-समान प्राण-प्रिय जे, वाल्हां बुलावी जिमइ जे-पाखइ न वहइ घरे अध-घडी, ते वीसरी-नइ रमइ ।
परि हूं, तेहूं ३ Missing in ग ४ । श्रीकृष्णनि, ख भावाभावि,
लालन, ग. जेह स्मरि. ११. १. क भाव भावि, ग. देव गीत दीन वचने. २. Missing in ग... व.
निंदा म. ९२. २. Missing in ग क. येह गुणे ४ क. स्मरि किशिं, ख. जीतू आ, ग.
हवि जत्मा स्मरि किही श्रीहरि. ९३ १ क. अनेक सानंद हिइ आदरइ जै सिउ In a different hand ऊलष्टि
written above आदरई ग. तर रह्या. २. ग. श्रीरं तेशू. ३ क. संशय भाग
रूप, ख कूप रचना, ग. संशय कूट परचना ४. कतम तु. ९४ २.ख वीसाई नइ Missing in ग.
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