Book Title: Sambodhi 1983 Vol 12
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 231
________________ बनारस-कम्पनी शैली की चित्रकला श्रीमनी आर्चर के अनुसार हुलासलाल नामक वनारस के एक चित्रकार ने १८०० के लाभग पटना में जाकर कम्पनी शैली के चित्रकला का कार्य शुरु किया । उसके न बनारस के राजा के दरवार में काकी असे तक दरबारी चित्रकार के रूप में कार्यरत थे 10 उस समय बनारस के राजा महीपनारायणसिंह थे ।11 उनका देहावसान १७९५ ई के लगभग हुआ । संभवतः उनकी मृत्यु के उपरान्त ही हुलासलाल एवं उनका परिवार बनारस छोड़कर पटना गया । हुलासलाल कम्पनी शैली के चित्रकार थे । उपयुक्त तथ्यों से इतना तो ज्ञात होता है कि बनारस के तत्कालीन राजा के दरबार में कलाकार अपनी चित्रकला के लिये प्रोत्साहन एवं राज्याश्रय पाया करते थे किन्तु निश्चित रूप से यह कहना कठिन हैं कि ये चित्रकार किस शैली में चित्रकारी करते थे 112 बनारस में कम्पनी शैली की चित्रकला अठारहवीं शताब्दी के उत्तराद्ध में शुरू हुयी होगी, इसलिये कि हुलासलाल नामक बनारस का चित्रकार, जो कम्पनी शैली की चित्रकला में सिद्धहस्त था, १८०० ईस्वो के लगभग पटना गया13 और वहाँ भी इसी शैली की चित्रकला में चित्र बनाता रहा । हुलासलाल के पूर्वज बनारस राजा के दरबारी चित्रकारों में से थे | पी. सी मानक नामक एक अग्रेज विद्वान ने लिखा है कि हुलासलाल की चित्रशैली में बनारस की चित्रकला का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगत होता है ।14 इस तरह यह प्रमाणित होता है कि अठारहवीं शदाब्दी के उत्तरार्द्ध में बनारस के कलाकार कम्पनी शैली वाले चित्र भी बनाया करते थे। यद्यपि १८१५ से १८३० ई. के मध्य बने बहुत से चित्र मिले तो हैं लेकिन ये किन कलाकारों द्वारा बनाये गये हैं, यह कहना सरल नहीं है। हो सकता है कि ये कमलापतिलाल के बनाये हुये चित्र हो ।15 महाराज उदित नारायण सिंह के समय बनारस में (१७९५ से १८३५)16 कमलापतिलाल, दल्लुलाल, फूलचन्द आदि इस शैली के अच्छे चित्रकार थे और ये सभी चित्रकार अठारहवीं सदी के प्रारम्भ में बनारस आये थे । 11 तुलसीकृत सचित्र रामायण का निर्माण इन्हीं के राजकाल में क्या था ।18 महाराज उदितनारायणसिंह के दत्तक पुत्र महाराज ईश्वरीनारायणसिंह (१८३५ से १८८९) के समय में कम्पनी शैली के चित्रों का प्रचुर मात्रा में निर्माण हुआ और कलाकारों ने अपनी बहुत दिनों की छिपी हुयी कलाभिव्यक्ति को चित्रों में उल दिया। स्वयं महाराज इश्वरीनारायणसिंह इन चित्रों के प्रति गहरी अभिरुचि प्रदर्शित करते थे। उनके दरबार में इस शैली के अच्छे चित्रकारों की कमी नहीं थी। कई चित्रकार तो दरबारी चित्रकार के रूप में पहचाने जाते थे और कुछ चित्रकारों को माहाराज ने दल्लुलाल के द्वारा चित्रकला की उचित शिक्षा भी दिलवायी थी।19 महाराज ने अपने राजदरबारियों, नौकरचाकर एवं इंट मित्रों आदि के व्यक्तिगत चित्र इन कलाकारों द्वारा निर्मित करायः इसके अतिरिक्त अपनी नदेशरी कोठी में के फूलों का अकन उन्होंने बहुत सुन्दर ढंग से करवाया सन्त महात्माओं के प्रति भी आप काफी आदर एवं श्रद्धा की भावना रखते थे उनके प्रति

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