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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
दूसरे वर्ग की ल० आटवीं शती ई० की एक मूर्ति पुरातत्त्व संग्रहालय, मथुरा (बी६५) में है । चारों जिन ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं। लटकती जटाओं, सप्तसर्पफणों की छत्रावली एवं सर्वानुभूति यक्ष और अम्बिका यक्षी की आकृतियों के आधार पर तीन जिनों की पहचान क्रमशः ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, एवं नेमिनाथ से संभव है।
दसरे वर्ग की सर्वाधिक मूर्तियां (१० वीं- १२ वीं शती ई०) देवगढ (ललितपुर) में हैं। अधिकांश मूर्तियों में जिन कायोत्सर्ग में खड़े हैं। मूर्तियों के ऊपरी भाग सामान्यतः शिखर के रूप में निर्मित हैं। जिनों के साथ सिंहासन, चामरधर, त्रिछत्र, दुन्दुभिवादक, उड्डीयमान मालाधर, गज़ एवं अशोक वृक्ष की पत्तियां भी उत्कीर्ण हैं। ग्यारहवीं शती ई० की दो मूर्तियों में चारों जिनों के साथ यक्ष-यक्षी भी निरूपित हैं। दोनों मूर्तियां मन्दिर १२ की चहारदीवारी के मुख्य प्रवेशद्वार के समीप हैं। इनमें केवल ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ की ही पहचान स्पष्ट है । देवगढ़ की अधिकांश मूर्तियों में केवल ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ (या सुपार्श्वनाथ)" की पहचान सम्भव है । सभी जिनों के साथ लांछन केवल कुछ ही उदाहरणों में उत्कीर्ण हैं । मन्दिर २६ के समीप की एक मूर्ति (११ वों शती ई०) में धानमुद्रा में विराजमान जिन वृषभ, कपि, शशि एवं मृग लांछनों से युक्त हैं। इस प्रकार यह ऋषभनाथ, अभिनन्दन, चन्द्रप्रभ एवं शान्तिनाथ की चौमुखी है।
राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सरायघाट (अलीगढ़) और बटेश्वर (आगरा) से मिली दसवों शती ई. की दो कायोत्सर्ग मूर्तियां (जे ८१३, जी १४१) सुरक्षित है। इनमें केवन ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की ही पहचान सम्भव है। एक मूर्ति में आठ ग्रहों की भी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। ऐसी ही मूर्ति शहडोल (म०प्र०) से भी मिली है (चित्र ५)। इसमें जिन आकृतियां ध्यानमुद्रा में विराजमान है। ___ खजुराहो से केवल एक ही मूर्ति (११ वीं शती ई०) मिली है। यह मूर्ति पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो (१५८८) में संकलित है। सभी जिन ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं। जिनों में केवल ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ को ही पहचान सम्भव है। प्रत्येक जिन मूर्ति के परिकर में १२ लघु जिन आकृतियां उत्कीर्ण हैं। इस प्रकार मुख्य जिनों सहित इस चौमुखी में कुल ५२ जिन आकृतियाँ हैं । २९ बिहार-उड़ीसा-बंगाल: ___बिहार और बंगाल से केवल दूसरे वर्ग की ही मूर्तियाँ मिली हैं। उड़ीसा से मिली किसी मूर्ति की जानकारी हमें नहीं है। बंगाल में जिन चौमुखी मूर्तियों (१० वीं-१२वीं शती ई.) का उत्कीर्णन विशेष लोकप्रिय था । इस क्षेत्र की सभी मूर्तियों में जिन निर्वस्त्र हैं, और का. योत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं। इस क्षेत्र की चोमुखी मूर्तियों में केवल ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर की ही मूर्तियां उस्कीणें हुई।
राजगिर के सोनभण्डार गुफा की ल• आठवीं शती ई० की एक मूर्ति में जिनों के लांछन पीठीका के धर्म चक्र के दोनों ओर उत्कीर्ण है (चित्र.६)। इस मूर्ति में वर्तमान अवसर्पिणी के प्रथम चार जिन, ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ एवं अभिनन्दन, आमूर्तित हैं।
. दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० की सत-देउलिया (बर्दवान) से मिली एक मूर्ति आशुतोष संग्रहालय, कलकत्ता में सुर क्षेत है।" मूर्ति का ऊपरी भाग शिखर के रूप में बना है। चारों
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