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लेषअलंकारतुं स्वरूप प्रकृत अने अप्रकृत विशेष्यो भिन्न शब्दोमां व्यक्त थयां होय तेनु उदाहरण नीचे प्रमाणे छः
अलं हिमानीपरिदीर्णगात्रः समापितः फाल्गुनसङ्गमेन ।
अत्यन्तमाकाकक्षितकृष्णवर्मा भीष्मो महात्माजनि माघतुल्यः ॥
आ उदाहरणमां भोष्म अने माघ ए बे विशेष्यो श्लिष्ट नथी. भीष्मनी साथे 'अलं हि मानी, परिदीर्णगात्रः' एम अने माघना साथे 'हिमानी(शैत्य)परिदीर्णगात्रः' एवं समजवानु छे. भीष्मनी साथे 'फाल्गुन(अर्जुन)सङ्गमेन समापितः' अने माघनी साथे 'फाल्गुनमासेन समापितः' एy समजवान छे. कृष्णवर्मा एटले कृष्णनो मार्ग अने अग्नि एवा बे अर्थो अनुक्रमे भीष्म अने माघ साथे समजवाना छे.
लेष अलंकार घणी वखत बीजा अलंकारो साथे संयुक्तरूपे जोवामां आवे छे. आवे समये प्रलेपने बीजा अलंकारो करतां वधु प्रवळ गणी बाधक मानवो, बीजा अलंकारो साथे मात्र एनो संकर गगवो के पछी बीजा अलंकारने बधु प्रबळ गणो आवा अलंकारो द्वारा तेने बाध्य मानवो ?
उद्भटना मत प्रमाणे श्लेष अलंकार ज्यारे बीजा अलंकारोना क्षेत्रमा प्रवेश्यो होय, त्यारे वधु प्रबळ होय छे. उद्भटनु मानवु छे के श्लेष अलंकारनु पोतानु स्वतंत्र क्षेत्र नथी. बे पदार्थो एकबीजा साथे संबद्ध होय, त्यारे बंने जो प्रकृत होय, के बंने अप्रकृत होय तो तुल्ययोगिता अलंकार थाय. बे प्रदार्थोमांनो एक प्रकृत होय अने बीजो अप्रकृत होय, तो दीपक अलंकार थाय. आम श्लेष अलंकार माटे कोई अलग क्षेत्र नथी. 'येन नाप्राप्ये य आरभ्यते तस्य स बाधकः' ए नियम प्रमाणे कोईनी प्राप्ति माटे बीजो कोई पदार्थ बहारथी लाववामां आवे त्यारे ते पदार्थ प्राप्त थएला पदार्थनो बाधक थाय छे. उपमा के रूपक जेवा अलंकारो साथे श्लेष संयोजाय त्यारे उपमानी प्रतीति श्लेषने कारणे थती होवाथी श्लेष बाधक छे. - उद्भटनी मान्यता साथे केटलाक सहमत थता नथी, तेमनु मानवु एवु छे के बोधक अलंकारनु स्वतंत्र क्षेत्र होतुं नथी ज्यारे श्लेषनु स्वतंत्र क्षेत्र छे. 'सर्वदो माधवः पातु यो गङ्गां समदीधरत्' मां श्लेष अलंकार छे, आवां उदाहरणोमां तुल्ययोगिता अलंकार छे एवं कही न शकाय कारण के शिव अने विष्णु वच्चे कोई साम्य नथी. एक ज शब्द द्वारा थती बे अर्थोनी प्रतीतिमांथी चमत्कृति उत्पन्न थाय छे. तेथी अहीं श्लेष अलंकार ज छे. प्रलेष अलंकारनु स्वतंत्र क्षेत्र होवाथी ते बाधक बनी शके नहीं. बीजा अलंकारनु पण पोतानु स्वतंत्र क्षेत्र छे. श्लेष जो बाधक होय तो बीजा अलंकारोनो प्रतीतिमां विघ्नो ऊभां थवां जोईए. श्लेष अने बीजा अलंकारोनां पोतपोतानां स्वतंत्र क्षेत्रो होवाथी ज्यां बने होय त्यां श्लेष अने बीजा अलंकारनी संसृष्टि मान्य राखवी जोईए. परंतु श्लिष्ट परंपरित (रूपक), श्लिष्टसमासोक्ति जेवां नामोनो प्रयोग दर्शावे छे के श्लेषनो बेजा अलंकारो साथे संकर थई शके. पोतानां स्वतंत्र क्षेत्रनो अभाव न होवाथी लेष कदी पण बीजा अलंकारनो बाधक न होई शके परंतु बीजा अलंकारो साथे संकीर्ण होई शके.
त्रीजा मत प्रमाणे श्लेष बाध्य छे अने बजा अलंकारो बाधक छे. कोई पण अलंकार स्वतंत्रपणे चमत्कृति उत्पन्न करे त्यारे ते स्वतंत्र अलंकार बने छे. परंतु ते अलंकार बीजा कोई अलंकार पासे गौण बने त्यारे पोतानु स्वतंत्र अस्तित्व गुमावी दे छे. श्लेष बीजा अलंकारोने चारुता आपतो होवाथी बीजा अलंकारो आगळ गौण बने छे अने तेथी ते स्वतंत्र अलंकार बनी न शके. आम श्लेष अलंकार बाध्य छे एवो केटलाक आलंकारिकोनो अभिप्राय छे.
प्लेष अने शब्दशक्तिमूलध्वनिमां शो मेद छ ? शब्दशक्तिमूलध्वनिमां प्रकृत अने अप्रकृत विशेष्यो श्लिष्ट शब्द द्वारा निर्दिष्ट होय छे. अप्यय दीक्षितनां मत प्रमाणे शब्दशक्तिमूलध्वनिमा मात्र उपमा ज व्यङ्गय होय छे. अप्रकृत अर्थ अभिधा द्वारा वाच्य बने छे. संदर्भने कारणे प्रकृत
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