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श्रावक कविओनी केटलीक अप्रकट गुजरातो रचनाओ
संपादक : भोगीलाल ज. सांडेसरा जूना गुजराती साहित्यमां जैन कविओनु विपुल प्रदान छे अने गुजरातीनु जे प्राचीनतम साहित्य उपलब्ध छे ते मुख्यत्वे जैन साहित्य छे. आ साहित्य महदंशे जैन साधु कविओनी रचना छे; जो के एमां क्यांक क्यांक देगल अने ऋषभदास जेवा श्रीवक गृहस्थ कविओना सुप्रसिद्ध अपवादो छे खरा. 'जैन गुर्जर कविओ' जेवो सन्दर्भग्रन्थ जोइए तो, सेंकडो साधु कविओनी वच्चे वीस-पचीस गृहस्थ कविओ के पद्यकारोनां नाम अने कृतिओ मळे खरा. आथी ए दिशामां शोध अने गृहस्थ कविओनी उपलब्ध कृतिओनु संपादन-प्रकाशन आवश्यक तेमज रसप्रद छे.
वडोदरा युनिवर्सिटीना गुजराती विभागना संग्रहमांना, सं० १५५९ अने १५६० आसपास लखायेला, हस्तलिखित गुटका नं. १२७ मांनां, 'श्रावक कवि गंगकृत गंतो' आ साथे अलग लेख रूपे प्रकाशित कयाँ छे. ए जगुटकामां बीजा केटलाक अज्ञात श्रावक कविओनी, अद्यावधि अप्रकट रचनाओ छे ते अहीं रज् करी छे.
लगभग बधी कृतिओ संक्षिप्त गीतरचनाओ छे; एकमात्र साह सुराकृत 'अंतरंग श्रीचिन्तामणि, पार्श्वनाथ विनती' २८ कडीनी छे अने एनी पुष्पिकामां लेखन वर्ष सं. १५५९ नो निर्देश छे. आ रचना हस्तप्रतना पत्र 126-B अने 127-B उपर लखायेल छे. एनी बीजी कडीमां 'वटरद्र नगरना गार' तरीके चिन्तामणि पार्श्वनाथनो निर्देश छे. वडोदरामां घडि. याळी पोळमां, पीपळा शेरोमां चिन्तामणी पार्श्वनाथनु मन्दिर छे, एनो ज आ निर्देश होय. .ए बतावे छे के ए मन्दिर निदान पांचसो वर्ष जूनुछे. एमां प्रतिष्ठित पाव नाथनी स्तुति करनार साह सूरा वडोदरानो रहेवासी होय ए संभवे छे. साह गोविन्दसुत श्रीकरणकृत 'शीलगीत' पत्र 5 A उपर छे; चांदासुत गोनुकृत गीत पत्र 11-A उपर; भीमकृत त्रण गीतो (एमांना एक गीतनु पुष्पिकामां 'वोतराग गीत' एवं नाम छे) अनुक्रमे पत्र 15-AB, 145. B अने 147-B उपर तथा परवतकृत 'प्रासुक पाणी गीत' पत्र 146-A उपर छे, .
हस्तप्रतनी नकलनां वर्ष जातां आ रचनाओ विकमना सोळमा शतकना पूर्वार्धमां के त्यार पहेलां थयेली छे ए निश्चित छे. एना कर्ताओ साह सूग, साह गोविन्दसुत श्रीकरण, चांदासुत गोनु तथा भीम अने परवतना जीवन विषे हाल कोई विशेष माहिती मळतो नथी.
१. साह सूराकृत 'अंतरंग श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ वीनती'
॥॥ जपु जगगुरु देवाधिदेव तूं त्रिभुवनतारण, रोग शोक अपहरण, धीर सवि संपदकारण, रागादिक जे अंतरंगरिषु तेह निवारण, तिहुयण सल्ल जे मयणमोह भड हेला मारण. १ चिंतामणि श्रीपास जिण, वटपद्रनयरशृंगार, मनह मनोरथ पूरणु ए, वंछित फल दातार. २
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