Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ 'सामायिक' शब्द से जैन समाज का युवक तथा वृद्ध प्रत्येक परिचित है । सामायिक याने समत्व प्राप्ति की साधना । संयोग व वियोग, सुख व दुःख, हर्प व शोक प्रत्येक मन:स्थिति में समत्व की अनुभूति-न तो दुःख, शोक व वियोग के प्रसंगों पर विलाप, उद्वेग, याकुलता एवं व्याकुलता और न ही वैभव, हर्प एवं संयोग की स्थिति में फूलने की मनोदशा कितना सुन्दर व सहज स्व की प्राप्ति का लक्ष्य है। वस्तुतः सामायिक प्रात्मा के स्व रूप में रमण की अलौकिक साधना है। यदि मोभ के लिए किसी को सोपान की संज्ञा दी जा सकती है तो इसी सामायिक को। आज के इस भौतिक युग में भी सहस्राधिक श्रद्धालु भक्तहृदय श्रावक-वन्धु नित्य प्रति यह साधना करते हैं पर सामायिक का सहज उन्मुक्त अानन्द कुछेक साधकों को ही मिला है, समता के सुधापान की अनुभूति इने-गिने श्रावक-हृदयों को ही हुई है। कारण क्या है ? हममें से अनेक सामायिक की साधनासंलग्न होकर भी सामायिक का स्वरूप व इसके सूत्र पाठों का सम्यक् आशय नहीं जानते हैं । क्रिया में निखार तभी होगा जब कि वह ज्ञान के प्रकाश में हो। दशवकालिक सूत्र निर्देश देता है-'पढमं नाणं तयो दया।' . प्रस्तुत पुस्तक में सामायिक के भव्य स्वरूप तथा इसके सूत्रों के पवित्र प्राशय को पाठक वन्धुओं के समक्ष एक छोटे से रूप में रखने का प्रयास किया गया है। सामायिक के वारे में सव

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 81