Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 11
________________ ( ११ ) * प्रस्तावना * भारतीय संस्कृत के निर्माण और विकास में जैन श्रमण श्रमणियों का सहयोग अमूल्य है । भारत के प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट विदित होता है कि इस वर्ग ने आत्म कल्याण के साथ सांस्कृतिक साहित्य निर्माण करने की बहुमूल्य सहायता प्रदान कर भारत को गौरवन्वित किया है । इस प्रकार का सांस्कृतिक साहित्य प्राचीन संस्कृति का पोषक ही नहीं अपितु नवीन संस्कृति का पथ प्रदर्शक भी है। सच कहा जाय तो प्रत्येक देश के राष्ट्र निम्मा से ऐसे त्यागियों की ही परमावश्यकता है। जहां पर त्याग और विद्वत्ता का समन्वय हो वहां पर तो पूछना ही क्या ? जैन समाज के कुछ समझदार मुनियों ने आवाज उठाई है कि जैन साध्वियों को सभा में व्याख्यान बांचने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इसमें मुनियों का अनादर होता है । मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार मैं कह सकूंगा कि वे लोग प्राचीन साहित्य के तलस्पर्शी अध्ययन और वर्तमान शिक्षा प्रवालिका के सौभाग्य से संभवतः वंचित हैं । प्राचीन जैनागमों में एतद्विषयक जो महत्व पूर्ण उल्लेख आये हैं उन सभी उल्लेखों का प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक ने बढी योग्यता व सफलता के साथ वर्णन किया है, जो लेखक के प्रकांड आगमिक ज्ञान का द्योतक है, इसके अतिरिक्त यह बात व्यवहारिक ज्ञान से भी जानी जा सकती हैं कि प्राचीन काल में ऐसी अनेक साध्वियां हुई हैं जिनमें से बहुतों ने बड़े बड़े मुनियों को संयम से विचलित होते बचाया है, संयम में पुनः स्थिर किये, जैन धर्म के चौबीस तीर्थ करों में स्त्री तीर्थकर भी थीं । उन्होंने जो उपदेश राजकुमारों को प्रतिबोधार्थ दिया था वह कितना महत्वपूर्ण है ( ज्ञाता धर्म कथा ) इसका कितना सुन्दर असर हुआ । बाहुबल जी जैसे अभिमानी को उनकी बहन ब्राह्मी सुन्दरी जैसी साध्वी ने पिघला दिया और गर्व छुड़ा दिया । राजीमति जिनका शुभाभिधान प्रातः उठते ही गौरव के साथ लिया जाता है, उन्होंने रथ नेमिको संयम से विचलित होते रोका था, जैसा कि उत्तराध्यनादि सूत्रों से फलित होता है। अतिरिक्त अनेक ऐसे उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनसे मालूम होता कि मुनि जीवन की रक्षा के इन साध्वियों ने आत्मों उपदेशों से कितना अभूतपूर्व कार्य किया । मध्य कालीन प्राचीन हस्त लिखित साहित्य देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है उसमें मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अनेक ऐसे ग्रन्थ मिले हैं जिनकी लेखिका साध्वियां थीं। सौ से ऊपर प्रशस्तियें मैने एकत्रित की हैं। आज का युग प्रगतिका है, खोज का है, प्रत्येक धर्म राष्ट्र समाज अपने अपने उत्थान के लिये शत प्रयत्न करते हैं। पर ऐसी स्थिति में जैन समाज के एक महत्व पूर्ण अंग की अपेक्षा कैसे की जा सकती है, मुनि लोग तो धर्म प्रचार करते ही हैं पर जहां उनका पहुंचना नहीं होता और बहां पर यदि साध्वीऐं आत्म वाणी से मुमुक्षुओं को उपदेश देकर उनकी जैन धर्म विषयमिक तृष्णा की तृप्ति करें तो क्या बुरा है ? अपितु एक महत्व के कार्य की पूर्ती होती है, यदि इन साध्वियों की शिक्षा की और यदि समाज विशेष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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