Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 31
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः आगे धर्मकथा का निषेध करने वाले जिनामा का उत्थापन करने वाले ठहरते हैं। . ___२९-“दशवकालिक" सूत्र का पाँचवां अध्ययन, बडी टीका सहित छपे हुए पृष्ठ १८४ में दूसरे उद्देशे की आठवीं गाथा की टीका का पाठ इस प्रकार है किं च "गोअर ग्ग"त्ति सूत्रं, गोचराग्रप्रविष्टस्तु भिक्षार्थं प्रविष्ट इत्यर्थः 'न निषीदेत् नोपविशेत् क्वचिद् गृहदेवकुलादौ संयमोपघातादिप्रसङ्गात् "कथां च" धर्मकथादिरूपां न प्रबध्नीयात् प्रबन्धेन न कुर्यात्, अनेनैकव्याकरणैक-ज्ञातानुज्ञामाह, अत एवाह-स्थित्वा कालपरिग्रहेण संयत इति, अनेषणाद्वेषादिदोषप्रसंगादिति सूत्रार्थः ॥८॥ इस पाठ का भावार्थ ऐसा है कि-गौचरी गए हुए साधु-साध्वी को गृहस्थों के घरों में देवकुलादि में बैठना नहीं कल्पता है, वहाँ पर लोगों का अति परिचय होने से संयम में बाधा पहुँचती है, और वहाँ पर लोगों को सुनाने के लिए व्यवस्थासर धर्मकथा धर्म देशना न करें। कदाचित् खास कारण हो तो एक प्रश्न का उत्तर या एक गाथा का अर्थ संक्षेप से कहदें, परन्तु बैठकर विस्तार से न कहें । जिस प्रकार “बृहत् कल्प" सूत्रका पाठ ऊपर में बतलाया जाचुका है उसमें साधु-साध्वियों को धर्मकथा करने का समान अधिकार है उसी ही अभिप्रायानुसार श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज ने भी ऊपर की टीका के पाठ में साधु-साध्वियों को धर्मदेशना का समान अधिकार ही बतलाया है। दशवैकालिक सूत्र का पहिला अध्ययन, चौथा अध्ययन, पाँचवाँ अध्ययन और आठवाँ अध्ययन की टीका के चारों पाठों के अनुसार और “संबोधप्रकरण" की गाथा जो ऊपर में बतला चुके हैं, इस प्रकार श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज ने उपरोक्त पांचो प्रमाणों के अनुसार, साधु-साध्वियों को धर्मदेशना (व्याख्यान बांचने) का समान अधिकार बतलाया है। दशवैकालिक सूत्रानुसार साधु-साध्वी दोनों को अपने संयम की आराधना करने की है संयम के साथ बारह प्रकार का तप भी सेवन किया जाता है। तप में स्वाध्याय कीजाती है और स्वाध्याय रूप तप में ही धर्मदेशना दी जाती हैं। ये अनादि सिद्ध नियम है। इस नियमानुसार साधुओं की तरह साध्विये भी धर्मदेशना देने की अधिकारिणी सिद्ध हैं। इसलिए साध्वियों को धर्मदेशना देने का कोई भी निषेध नहीं कर सकता। ... ३०-फिर भी देखिये साधु-साध्वियों को पांच समितियों का पालन करने की भगवान् की आशा है। उसमें दूसरी भाषा समिति अर्थात्-उपयोग पूर्वक अपनी आत्मा को और दूसरे प्राणियों को हितकारी मधुर वचन बोलने वाले साधु-साध्वी भगवान् की आशा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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