Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 52
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः ६४-फिर भी देखिये-श्री महानिशीथसूत्र आदि अनेक शास्त्रों में उपधान वहन किये बिना श्रावक-श्राविकों को नवकार मंत्र पढना गुणना नहीं कल्पता ऐसी विधि प्रतिपादित है, परन्तु द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावानुसार अभी विना उपधान वहन किये लाखों श्रावक-श्राविकाओं को नवकार मंत्र साधु साध्वी सिखाया करते हैं, यह बात प्रसिद्ध ही है। इसही प्रकार कल्पसूत्र भी पहिले तो पर्युषणा की रात्रि में संवत्सरी प्रतिक्रमण किये बाद सर्व साधु काउस्सग ध्यान में सुनते और एक साधू सब को सुनाता था यह विधि थी। परन्तु आज प्रत्येक गाँवों में नगरों में प्रति वर्ष सय के सामने कल्पसूत्र बांचने की प्रवृति शुरू है। जिस नगर में साधुओं का चौमासा हो प्राचार्य उपाध्याय श्रादि पदवीधर मौजूद हों तो भी बड़े बड़े शहरों में बहुत जगह यति श्री पूज आदि से भी कल्पसूत्र बंचाते हैं। ऐसी दशा में महाव्रतधारी पढ़ी लिखी विदुषी साध्वी पर्युषणा के व्याख्यान में कल्पसूत्र बांचकर सुनावे तो इसमें कोई हानि नहीं । जिस पर भी जो महाशय श्रावक-श्राविकों के सामने साध्वी को व्याख्यान बांचने का और पर्युषणों में कल्पसूत्र बांचने का निषेध करते हैं वह महाशय मिथ्या हठाग्रह करते हैं। ६५-अगर कहा जाय कि जिस तरह से साधुओं को जब केवलज्ञान होता है तो देवता आकर उत्सव करते हैं और स्वर्ण कमल रचते हैं उस पर बैठकर केवलज्ञानी देशना देते हैं । इसही तरह से साध्वी को भी केवलज्ञान होवे तब साधुओं की तरह केवलज्ञान का महोत्सव करने का तथा स्वर्ण कमल की रचना करने का और उस स्वर्ण कमल पर केवलज्ञानी साध्वी बैठकर धर्म देशना देने का किसी भी शास्त्र में देखने में नहीं आता। तो फिर अभी साध्वियाँ व्याख्यान कैसे बांच सकती हैं ? यह कथन भी अनुचित है। क्योंकि देखियेजिस प्रकार पुरुष के दीक्षा लेने के समय महोत्सव होता है, उसही तरह स्त्री के भी दीक्षा लेने के समय में महोत्सव होता है, यह बात “भगवती" "ज्ञाताजी,” “अन्तगड दशा" आदि अनेक शास्त्रों के प्रमाणानुसार जैन समाज में प्रसिद्ध है, जब दीक्षा लेने के समय पुरुष और स्त्री दोनों के लिए अपने २ पुन्यानुसार महोत्सव होने का अधिकार है चन्दनवाला आदि के दीक्षा समय महोत्सव होने का कल्पसूत्र की टीकाओं आदि शास्त्रों में उल्लेख आता है तब दीक्षा लिए बाद उत्कृष्ट तप संयम की आराधना करके क्षपक श्रेणी चढकर शुक्ल ध्यान से घनघाती कर्मों का क्षय करके अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन की प्राप्ति कर लेवें ऐसी महान् शुद्ध निर्मल पात्मा के लिए केवलज्ञान का महोत्सव तथा धर्म देशना देने का निषेध करना कोई भी बुद्धिमान नहीं मान सकता और साधु हो अथवा साध्वी हो उनके लिये किसी बात का महोत्सव होना, देवता या मनुष्यों का आना, वंदन-पूजन-मान-सत्कार का होना ये बातें अपनी २ पुण्य प्रकृति के अनुसार होती हैं । और किसी २ मुनियों के प्राणांत उपसर्ग के समय भी कोई देवता या मनुष्य नहीं आते, और प्राणान्त होने पर आयु पूर्ण करके देवलोक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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