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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
ही अनेकवार वन्दना करते हैं। इसमें पंच महाव्रतधारी अपने से दीक्षा में छोटे सब साधुओं को भाव से वन्दना होती है। पंच महाव्रतधारी सब साधु वन्दनीय पूज्यनीय अवश्य ही हैं, परन्तु अपने से दीक्षा में छोटे हों उन्होंको व्यवहार से पंचाङ्ग नमाकर द्रव्य वन्दना करने का व्यवहार नहीं है । इसही तरह से महाव्रतधारी संयमी छद्मस्थ साध्वी हो या केवल ज्ञानी साध्वी हो गुणों की दृष्टि से वंदनीय पूज्यनीय अवश्य ही है। इसलिए साधुओं के वन्दना की व्यवहारिक बात को आगे करके श्रावक श्राविकाओं की सभा में साध्वी को व्याख्यान बांचने का निषेध करना भूल है ।
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६० -- अगर कहा जाय कि - साध्वी को आहारक लब्धि नहीं होती तो फिर साध्वी व्याख्यान कैसे बच सकती है। ऐसा कहनेवालों को साध्वियों के व्याख्यान बांचने के ऊपर बड़ा ही द्वेष मालूम होता है। क्योंकि साध्वी अगर विराधक होकर अनेक प्रकार के दुष्ट कर्म करे तो भी आयुः पूर्ण करके सातवीं नरक में नहीं जा सकती और शुद्ध संयम पालन करती हुई उत्कृष्ट शुद्ध अध्यवशाय से गुणठाणों में चढकर शुक्ल ध्यान से घनघाती कर्म क्षय करके केवल ज्ञान प्राप्त करके मुक्ति में जासकती हैं। इसलिए आहारक लब्धि न हो तो भी व्याख्यान बांचकर परोपकार करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं सकती । ऐसी २ कुयुक्तियें करने पर भी साध्वी को व्याख्यान बांचने का निषेध नहीं हो सकता । परन्तु जिन मनुष्यों को अपने स्वार्थवश दूसरों से द्वेष हो जाता है तब सत्याअसत्य का विचार किये बिना ही दूसरों के अवगुण कहने लग जाते हैं। इसही प्रकार कई साधु लोगों के और उन साधु लोगों के दृष्टि रागी पक्षपाती श्रावकों के भी साध्वियों के व्याख्यान पर अन्तर का पूर्ण द्वेष होगया है, जिससे संयमी साध्वी के ज्ञान गुणोंकों और उनके व्याख्यान आदि से होनेवाले शासनहित, परोपकार, जीवदया, व्रत पश्ञ्चक्खाण, सम्यक्त्व प्राप्ति आदि अनेक धर्मकार्यों के लाभ को न देखते हुए केवल व्याख्यान बांचने का निषेध करने की ही दुर्बुद्धि हुई है। इसलिए आहारक लब्धि आदि बिना प्रसङ्ग की बातें बतलाकर विषयांतर करके भोलेजीवोंको भ्रम में डालते हैं ।
६१-अगर कहा जाय कि "बृहत्कल्प" सूत्र में लिखा है कि- जिस मकान में साध्वी ठहरी हो यदि उस मकान का दरवाजा खुला हो तो उसके आगे एक पडदा दरवाजे के फाटक पर बांध देना चाहिए, जिससे दूसरे पुरुषों की दृष्टि साध्वी पर न पड सके। जब साध्वियों के लिए इस प्रकार का नियम है तो फिर साध्वियाँ श्रावक श्राविकाओं के समुदाय में व्याख्यान कैसे बांच सकती हैं ? इस प्रकार शंका करनेवाले जैन शास्त्रों के अति गंभीर भावार्थ को नहीं जानने वाले मालूम होते हैं क्योंकि देखिये - साध्वियाँ आहार करती हो अथवा पडिलेहन आदि करती हो उस समय किसी प्रकार का कुछ अंग खुला हो ऐसी दशा में अन्य पुरुष की दृष्टि पडना अनुचित है । अथवा अन्य मतवालों की दृष्टि बचाने के लिए और अपने स्वाध्याय ध्यान आदि धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार की बाधा न होने के हेतु खुले दरवाजे
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