Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 48
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः नुसार साधु को भी व्याख्यान नहीं यांचना चाहिये । परन्तु ऐसी मिथ्यात्व को बढानेवाली, मिथ्या भ्रम जनक कल्पना सर्थश भगवान की प्राशा पालन करनेवालों के मन से कभी नहीं उठ सकती पर करुणा बुद्धि से संसार दावानल में जलते हुए और रोग, शोक वियोग आदि दुखों से आर्तध्यान करते हुए प्राणियों को उद्धार करने की भावना से शान्त रस मय वैराग्य उत्पन्न करनेवाला सर्वश भाषित धर्मोपदेश का व्याख्यान चलता हो, उस समय चाहे साधु हो या साध्वी हो अपने पुत्र पुत्री के तुल्य भावक श्राविकायें भगवान की वाणी सुनने को सामने बैठे हों उन्हों के सामने सामन्यतया उदासीनभाव से देखने में आवे तो उस समय विकारभाव का प्रसंग नहीं है। ऐसे अवसर पर विकारभाव नहीं हो सकता है, इसलिए विकारभाष होने का बहाना लेकर साध्वीमात्र को ही व्याख्यान यांचने का ही निषेध करने रूप भ्रम फैलानेवाले बड़े अज्ञानी ठहरते हैं। ५६-फिर भी देखिये- अगर सभा में सामान्यतया सामने देखने से ही विकारभाव पैदा होता हो तब तो खास भगवान के सामने समवसरण में ही गौतमस्वामी आदि साधु साध्वियों को दिखाने के लिए ही इन्द्रादि देव वैराग्यमय अनेक तरह का नाटक करते हैं यहाँ पर दिव्य मनोहर अनेक स्त्री पुरुषों के रूप साधु साध्वियों के देखने में आते हैं, तो मी सबको विकारभाव होने का कभी नहीं कह सकते । इसी तरह से साध्वी मी व्याख्यान समय सामान्यतया पुरुषों के सामने निर्विकारभाव से देख लेवें तो उसमें विकारभाव उत्पन्न होने का सब को कभी नहीं कह सकते हैं। ५७-अगर कहा जाय कि-अमुक गाँव में एक अमुक साध्वी व्याख्यान बांचती थी, एक भाषक के साथ उसका अति परिचय होगया वह श्रावक भी उस साध्वी के पास बारपार अकेला जाने लगा आपस में मोहभाव से बिगाड होकर धर्म की बहुत हानि हुई इसलिए साध्वी को व्याख्यान बांचला उचित नहीं है, ऐसा कहकर सब साध्वियों को व्याख्यान बांचने का निषेष करना बड़ी भूल है। साध्वी ने श्रावक के साथ वाले परिचय किया जिससे इस प्रकार नुकसान हुआ । परन्तु समुदाय में व्याख्यान बांच से किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो सकता देखिये-किसी साधु के पास में कोई भाविका वन्दना करने को आती हो और साधु उस भाविका के घर में श्रहार पानी अादे के लिए बारम्बार जाता हो ऐसी दशा में कमी प्रति परिचय होकर मोदभाव से ब्रह्मचर्य की हानि हो जाय अथवा सर्वथा धर्मभ्रष्ठ होजावे, तो उसके कर्म की गति परन्तु उस एक का दृष्टान्त बतलाकर सब श्राविकाओं को गुरु महाराज के पास में वन्दना करने को आने का और सब साधुओं को श्राविकाओं के परों में पाहार पानी आदि के लिए जाने का निषेध कभी नहीं हो सकता इसलिए अकेली साध्वी का इष्टान्स बतलाकर के समुदाय में सब साध्वियों के व्याख्यान बांचने का निषेध करना सर्वथा अनुचित है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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