Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 46
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः ५१-अगर कोई कहे कि छः छेद और चौदह पूर्व पढने की सादो को मनाई है, तो फिर साध्वी व्याख्यान कैसे बांच सकती है । यह कहना भी अनुचित है क्योंकि-छ छेद और चौदह पूर्व आदि पढने की तो सामान्य साधु को भी गनाई है, उनका पढना योग्यतानसार होता है पर व्याख्यान तो सामान्य साध भी बांच सकता है, उस प्रकार साध्वी भी व्याख्यान बांच सकती है। कहीं कही ऐसा भी देखा जाता है कि कोई बहुत विद्वान होने पर भी भप्रावशाली उपदेश नहीं दे सकते हैं और कई अल्प पढे हुए भी अच्छा प्रभावशाली' उपदेश दे सकते हैं. इसलिए पढने की बात बतलाकर उपदेश देने की मनाई करना उचित नहीं हैं, साध्वियाँ केवल ज्ञान प्राप्तकर असन्त जीवों का उद्धार करके मोक्ष में जाती हैं। उस बात को समझनेवाले कोई भी बुद्धिमान व्याख्यान बांचने की मनाई कभी नहीं कर सकते । ५२-अगर कोई कहे कि-साध्वी को संस्कृत पढने की मनाई है, और सूत्रों की टीका संस्कृत में है। इसलिए संस्कृत पढे बिना टीका समझ में नहीं आसकती, तो फिर व्याख्यान कैसे बांच सकती है। यह कथन भी उचित नहीं, साध्वी को संस्कृत पढने की मनाई किसी भी शास्त्र में नहीं है, यह तो अनसमझ लोगों ने हठाग्रह के वश में प्रत्यक्ष मिथ्या बात का प्रपंच फैलाया है, अभी वर्तमान में तपगच्छ की ही साध्वियाँ, लघुशांति, वृहदशांति,भक्तामर, स्नातस्या और सकलाऽहत् आदि अनेक स्तोत्र स्तुति पढती हैं तथा अभी कुछ वर्ष पहिलें आगमों की बांचना के समय में साधुओं के साथ साथ ही साध्वियों को भी, खास आनन्दसागरजी (सागरानन्द सूरिजी) ने सूत्रों की टीका बंचाई है। और जब कि ग्यारह अंगो को पढने की साध्वियों को प्राक्षा है, तो फिर उसकी व्याख्या पढने का निषेध कैसे हो सकता है।? कभी नहीं ? ग्यारह अंगों की तरह उनकी व्याख्या रूप अर्थ भी पढने की साध्वी को भगवान की आशा है । अतएव सूत्रों की संस्कृत टीका तथा सूत्रों को साध्वी व्याख्यान में बांच सकती है। ___५३-कई महाशय-चौदहपूर्वो को संस्कृत भाषा में जानकर साध्वियों को पूर्व पढने की मनाई समझते हैं, यह भी उनकी भूल है, क्योंकि संस्कृत भाषा के स्तोत्र चरित्र और सूत्रों की टीका आदि साध्वियाँ पढती हैं, यह बात सर्व गच्छों में सब साधुओं को भी मान्य हैं इसलिए संस्कृत भाषा में पूर्व होने से साध्वियाँ, पूर्वो की पढाई नहीं कर सकतीं, यह बात नहीं है किन्तु पूर्षों में मंत्र तंत्र यंत्र और वनस्पति आदि की अपूर्व शक्ति और अनेक प्रभाव शाली दिव्य वस्तुओं का संग्रह तथा अन्य भी अनेक गम्भीर विषयों का प्रतिपादन होने से सामान्य साधु साध्वियों को पढने की मनाई हो सकती है। और प्रतिक्रमण में " नमोऽस्तु वर्द्धमानाय" नहीं पढती जिसका कारण भी संस्कृत भाषा का नहीं किन्तु उसका उच्चारण "बाल वृद्ध मंदबुद्धिवाली स्त्रियाँ (साध्वियाँ) स्पष्ट रूप से नहीं कर सकतीं और "संसार दावा" सब के सुख से उच्चारणहोसके इसलिए "संसार दावा" बोलती है। और भी देखिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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