Book Title: Sadhvi Vyakhyan Nirnay
Author(s): Manisagarsuri
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalay

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Page 55
________________ साध्वी व्याख्यान निर्णयः परिशिष्ट नं. १ जो जो साधुओं ने अपने आश्रित साध्वियों को व्याख्यान बांचना निषेध करके ज्ञान वृद्धि की अंतराय की, उनकी साध्वियों की कैसी दुर्दशा हुई उसका दिग्दर्शन कराने वाला १ लेख जैन पत्र पु० ३७ अंक ४० का १६॥ १०॥ ३८ का विक्रम् १६६४ पासो वदि ८ रविवार को भावनगर से प्रकाशित हुआ वह लेख नीचे उर्द्धत किया जाता हैसाध्वी संस्था आजे समाज माटे कोयड़ा रूपे केम बनी ? [ लेखिका-साध्वी खान्तिश्रीजी ] अाजे केटलाये समय थया पुरुष वर्गे "स्त्री" नी शक्ति, बल अने बुद्धि केवी रीते दबावी दीधी छ ? केटली हदे तेने नीचे उतारी पाड़ी छे? तेमो जो उल्लेख करवा मां आवे तो मोटुं एक पुस्तक थाय; परन्तु अत्यारे ए विवेचनं नहीं करता साध्वी संस्था तरफ लक्ष खेचाय छ। आजे साध्वियो मां अज्ञान, कुसंप, झगड़ा अने कुथलीअो केम वधी ? तेनुं जरा निरीक्षण करीए । __पहेला तो घरनी अंदर स्त्रियो नै कोई पण प्रकारनी केलवणी अपाती नथी । तेना मां उच्च संस्कार रेड़ाता नथी । तेथी घरनी अंदर केम वर्तवु ? ते तेनी समझ मां होतुं नथी। केलवणी नहीं पामेली स्त्रिो माता पुत्री, सासू बहू, देराणी जेठाणी अने नणंद भोजाई आपस आपस मां लड़Q काम माटे हुशा तुशी करवी एक बीजा पर हुकुमो चलाववा-श्रावो वर्ताव चाली रह्यो होय छे। वली पुरुषों नी बीक थी कोई दिवस सारूं पुस्तक वाचवू के सद्गुरू नो संग करवो श्रेतो एने होय ज नहीं। एने तो घरनी चार दीवालों बच्चे रात दिवस पुराई रहेवानु । जगतनी अंदर सुं सु चाली रह्यं छे ? दुनिया कई दिशाए गमन करी रही छे ? एने भानज न होय, केम के घरना काम माथी ए ऊंची ज न आवे । श्रावी रीते तेनी बुद्धि अने शक्ति बेड़फाइ जाय छे अने पोतार्नु पराक्रम फोरवी शकती नथी। . . कम भाग्ये ए बिचारी विधवा बने अने बे बरस खुणो पालवानुं होय। पछी विधवा बनेली ते कहंक धर्म नो आश्रय ले छे। एटले के घरना काम थी परवारी देरासरे दशन करवा, गुरू महाराज ना दर्शन करवा अने प्रतिक्रमण करवा विगेरे क्रिया मा जोडाय । त्यां एने साध्वीजीओ ना संग थाय अने समझाववा मां आवे के बेन ! तारा एक पेट माटे शा सारू पाखा घरनों धंधों कुटे छे ? हवे तारे घरमा शुं रह्य छे नाहक एटला कर्म शा माटे बांधवा जोपए ? 'चाल तूं मारी चेली था, तने काम नहीं करवू पड़े अने त्हारा आत्मा नो उद्धार कर , प्रा उपदेश र अज्ञान बाईना हृदय मां वसी जाय । एना मन मा एम थाय छे के हवे मारे काम नहीं कर पड़े ने आ घर मांथी छुटीश। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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